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बहुमूल्य पात्र - ग्रहण निषेध
२४७. से भिक्खू वा २ से जाई पुण पाया जाणेज्जा विरूवरूवाइं महद्धणमोल्लाई, तं जहा - अयपायाणि वा तउपायाणि वा तंबपायाणि वा सीसगपायाणि वा हिरण्णपायाणि वा सुवण्णपायाणि वा रीरियपायाणि वा हारपुडपायाणि वा मणि - काय - कंसपायाणि वा संख-सिंगपायाणि वा दंतपायाणि वा चेलपायाणि वा सेलपायाणि वा चम्मपायाणि वा अण्णयराणि वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाई महद्धणमोल्लाइं पायाइं अफासुयाई जाव नो पडिगाहेज्जा ।
२४७. साधु-साध्वी यह जाने कि गृहस्थ के पास नाना प्रकार के मूल्यवान पात्र हैं, जैसे कि लोहे के बने पात्र, राँगे कलई किया हुआ पात्र, ताँबे के पात्र, . सीसे के पात्र, चाँदी के पात्र, सोने से बने पात्र, पीतल के पात्र, हारपुट (त्रिलोह) धातु के पात्र, मणि, काँच और काँसे के पात्र, शंख और सींग के पात्र, दाँत के पात्र, वस्त्र के पात्र, पत्थर के पात्र या चमड़े के पात्र, दूसरे भी इसी तरह के अनेक प्रकार के अधिक मूल्यवान पात्रों को अप्रासुक और अनेषणीय जानकर ग्रहण नहीं करे।
CENSURE OF EXPENSIVE POTS
247. A disciplined bhikshu or bhikshuni should know about various highly expensive pots, such as-iron pots, pewter or tin plated pots, copper pots, lead pots, silver pots, gold pots, brass pots, pots of an alloy of three metals, pots made of gems, glass or bronze, pots made of shell, horn and ivory, pots made of cloth and pots made of stone or leather. An ascetic should not accept these and other such highly expensive pots considering them to be faulty and unacceptable.
२४८. से भिक्खू वा २ से जाई पुण पाया जाणेज्जा विरूवरूवाइं महद्धणबंधणाई, तं जहा - अयबंधणाणि वा जाव चम्मबंधणाणि वा अण्णयराइं वा तहप्पगाराई महद्धणबंधणाइ अफासुयाई जाव णो पडिगाहेज्जा ।
२४८. साधु-साध्वी उन पात्रों को भी जाने, जो (लकड़ी आदि के कल्पनीय होते हुए भी) विविध प्रकार के मूल्यवान बन्धन लगे हुए हैं, जैसे कि वे लोह के, स्वर्ण के यावत् चर्म-बन्धन वाले हैं अथवा अन्य इसी प्रकार के बहुत मूल्यवान बन्धन वाले हैं, तो उन्हें अप्राक और अनेषणीय जानकर ग्रहण न करे ।
पात्रैषणा: षष्ठ अध्ययन
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Paatraishana: Sixth Chapter
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