Book Title: Agam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 396
________________ AG विनयपिटक की घटना से ज्ञात होता है कि बौद्ध भिक्षु पहले मिट्टी का पात्र भी रखते थे, किन्तु एक घटना के पश्चात् बुद्ध ने लकड़ी के पात्र का निषेध कर दिया; वह घटना संक्षेप में इस प्रकार है 0000000000000 एक बार राजगृह के किसी श्रेष्ठी ने चन्दन का एक सुन्दर, मूल्यवान पात्र बनवाकर बाँस के सिरे पर ऊँचा टाँगकर यह घोषणा करवा दी कि " जो श्रमण, ब्राह्मण, अर्हत् ऋद्धिमान हो, वह इस पात्र को उतार ले ।” उस समय मौद्गल्यायन और पिंडोल भारद्वाज पात्र - चीवर लेकर राजगृह में भिक्षार्थ आये । पिण्डोल भारद्वाज ने आकाश में उड़कर वह पात्र उतार लिया और राजगृह के तीन चक्कर लगाये। इस प्रकार चमत्कार से प्रभावित बहुत-से लोग हल्ला करते हुए तथागत के पास पहुँचे । तथागत बुद्ध ने पूरी घटना सुनी तो उन्हें बहुत खेद हुआ । भारद्वाज को बुलाकर भिक्षु संघ के सामने फटकारते हुए कहा - " भारद्वाज ! यह अनुचित है, श्रमण के अयोग्य है। एक तुच्छ लकड़ी के बर्तन के लिए कैसे तू गृहस्थों को अपना ऋद्धि-प्रातिहार्य दिखायेगा ? फिर बुद्ध ने भिक्षु संघ को आज्ञा दी, उस पात्र को तोड़कर टुकड़े-टुकड़े कर भिक्षुओं को अंजन पीसने के लिए दे दो ।" इसी संदर्भ में भिक्षु संघ को सम्बोधित करते हुए कहा - " - " भिक्षु को सुवर्णमय, रोप्य, मणि, कांस्य, स्फटिक, काँच, ताँबा, सीसा आदि का पात्र नहीं रखना चाहिए । भिक्षुओ ! लोहे के और मिट्टी के दो पात्रों की अनुज्ञा देता हूँ। (विनयपिटक, चुल्लवग्ग, खुद्दक वत्थुखंध ५/१/१०, पृ. ४२२-४२३) Elaboration-This aphorism prescribes three type of pots for ascetics but in the last portion it says-if the ascetic is young and strong he should have only one pot, not more. The commentator (Vritti) has clarified that "this rule could be for a Jinakalpi Shraman or one with special resolves. For a Sthavir-kalpi there is a provision of three pots.” (Vritti leaf 399) Whereas Bhagavan Mahavir has made provision of wooden, earthen and gourd pot for Shramans in the codes, the Buddha has made provision of iron and earthen pots denying wooden pot. From an incident mentioned in Vinayapitak it is revealed that earlier Buddhist monks used earthen pots also but after a particular incident it was proscribed. The incident in brief is as follows Once a merchant in Rajagriha got a beautiful and expensive pot made of sandal-wood. He hung that pot high to one end of a long and standing bamboo and made an announcement-"The Shraman, आचारांग सूत्र (भाग २) ( ३४८ ) Acharanga Sutra (Part 2) Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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