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(3) Paribhukta–To seek old clothes (used clothes) such as under or upper or other garments the householder has.
(4) Ujjhitadharmika—To beg for a cloth worth discarding being of no use to the householder.
These four pratimas are also mentioned in Vrihatkalpasutra Vritti, p. 180 and Nishith Churni, Ch. 5, p. 568.
पश्चात्कर्म आदि अनैषणीय वस्त्र-ग्रहण का निषेध
२१८. सिया णं एयाए एसणाए एसमाणं परो वइज्जा-आउसंतो समणा ! एज्जाहि तुमं मासेण वा दसराएण वा पंचराएण वा सुते वा सुततरे वा, तो ते वयं अण्णयरं वत्थं दाहामो। एयप्पगारं णिग्योसं सोच्चा निसम्म से पुव्वामेव आलोएज्जा-आउसो ! ति वा, भगिणी ! ति वा, णो खलु मे कप्पइ एयप्पगार संगारं पडिसुणेत्तए, अभिकंखसि मे दाउं इदाणिमेव दलयाहि।
२१८. वस्त्र की गवेषणा करने वाले साधु को यदि कोई गृहस्थ कहे कि “आयुष्मन् श्रमण ! इस समय तो तुम चले जाओ, एक मास या दस या पाँच दिन के बाद अथवा कल या परसों आना, तब हम तुम्हें एक वस्त्र देंगे।" इस प्रकार का कथन सुनकर वह साधु विचार कर पहले ही कह दे-“आयुष्मन् गृहस्थ अथवा बहन ! मुझे इस प्रकार का प्रतिज्ञापूर्वक वचन स्वीकारना नहीं कल्पता, यदि तुम मुझे वस्त्र देना चाहते हो तो अभी दे दो।"
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CENSURE OF CLOTHES INVOLVING VARIOUS FAULTS
218. If some householder tells to an ascetic exploring for clothes—“Long lived Shraman ! Please go now and come after a month, ten or five days, tomorrow or the day after when I will give you a cloth.” On hearing these words the ascetic should thoughtfully reply—“Long lived householder or sister ! It is not proper for me to accept such promise. If you want to give please give the cloth now.”
२१९. से णेवं वयंतं परो वइज्जा-आउसंतो समणा ! अणुगच्छाहि, तो ते वयं अण्णयरं वत्थं दाहामो। से पुवामेव आलोएज्जा--आउसो ! ति वा, भइणी ! ति वा, णो खलु मे कप्पति एयप्पगारे संगारवयणे पडिसुणेत्तए, अभिकंखसि मे दाउं इयाणिमेव दलयाहि।
209.2014
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आचारांग सूत्र (भाग २)
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३२६ )
Acharanga Sutra (Part 2)
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