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गृहस्थ ! इस वस्त्र को तुम प्रासुक शीतल जल या उष्ण जल से मत धोओ। यदि मुझे देना चाहते हो तो ऐसे ही दे दो।" साधु के मना करने पर भी यदि वह जल से धोकर देने लगे तो अप्रासुक एवं अनेषणीय जानकर ग्रहण न करे।
222. If the householder tells to some member of the family (sister etc.)—“Long lived brother or sister ! Please fetch that cloth, I will wash it with uncontaminated cold or hot water once or many times and give it to the ascetic.” On hearing these words the ascetic shou.d at once tell—“Long lived householder ! Please do not wash the cloth with uncontaminated cold or hot water. If you want to give please give the cloth as it is.” Even after this warning by the ascetic if the householder proceeds to wash before offering it, the ascetic should refuse to take it considering it to be faulty and unacceptable.
२२३. से णं परो णेया वएज्जा-आउसो ! ति वा, भइणी ! ति वा, आहर एयं । , वत्थं कंदाणि वा जाव हरियाणि ता विसोधेत्ता समणस्स णं दाहामो। एयप्पगारं णिग्योसं
सोच्चा निसम्म जाव भइणी ! ति वा, मा एयाणि तुमं कंदाणि वा जाव विसोहेहि, णो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे वत्थे पडिगाहित्तए।
से सेवं वदंतस्स परो कंदाणि वा जाव विसोहेत्ता दलएज्जा। तहप्पगारं वत्थं अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा।
२२३. यदि वह गृह-स्वामी घर के किसी सदस्य से कहे कि “आयुष्मन् ! उस वस्त्र को लाओ, हम उस वस्त्र में कन्द यावत् हरी (वनस्पति) (बँधी हुई हो तो) निकालकर साधु को देंगे।" ऐसा सुनकर पहले ही दाता से कह दे-“आयुष्मन् गृहस्थ ! ऐसा मत करो। इस प्रकार का वस्त्र ग्रहण करना मुझे नहीं कल्पता है।" ___साधु के द्वारा निषेध करने पर भी वह गृहस्थ कंद यावत् हरी वस्तु को निकालकर देने लगे तो उस वस्त्र को अप्रासुक एवं अनेषणीय समझकर ग्रहण न करे।
223. If the householder tells to some member of the family (sister etc.)“Long lived brother or sister ! Please fetch that cloth, I will take out the bulbous roots (etc. up to green or vegetables bundled in it) and give it to the ascetic.” On hearing
these words the ascetic should at once tell—"Long lived २. वस्त्रैषणा : पंचम अध्ययन
( ३२९ ) Vastraishana : Fifth Chapter
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