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२३२. साधु-साध्वी अपने वस्त्रों को धूप में सुखाना चाहे तो वह ठूंठ पर, दरवाजे की देहली पर, ऊखल पर, स्नान करने की चौकी पर इस प्रकार के अन्य अन्तरिक्ष - भूमि से ऊँचे स्थान पर जोकि भलीभाँति बँधा हुआ नहीं है, ठीक तरह से भूमि पर गाड़ा हुआ या रखा हुआ नहीं है, निश्चल नहीं है, हवा से इधर-उधर चल-विचल हो रहा है, वहाँ अपने वस्त्र को नहीं सुखाए ।
232. If a bhikshu or bhikshuni wants to dry clothes in sun he should avoid spreading them on tree-stump, door-sill, ookhal (wooden pot used for pounding grains), bathing stool or other such raised place that is not properly tied, fixed in or placed on ground, is unstable and swaying due to wind.
२३३. से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा वत्थं आयावेत्तए वा पयावेत्तए वा, तहप्पगारं वत्थं कुलियंसि वा भित्तिंसि वा सिलंसि वा लेलुंसि वा अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए जाव णो आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा ।
२३३. इसी प्रकार साधु-साध्वी यदि वस्त्र को धूप में सुखाना चाहे तो घर की पतली दीवार पर नदी के तट पर, शिला पर रोड़े-पत्थर पर या उसी प्रकार के किसी अन्य अन्तरिक्ष स्थान पर जोकि चंचल आदि है, उस पर वस्त्र न सुखाए ।
233. If a bhikshu or bhikshuni wants to dry clothes in sun he should avoid spreading them on a thin wall in the house, riverbank, rock, heap of pebbles or other such high but unsecured place.
२३४. से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा वत्थं आयावेत्तए वा पयावेत्तए वा, तहप्पगारं वत्थं खंधंसि वा मंचंसि वा मालंसि वा पासायंसि वा हम्मियतलंसि वा अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए जाव णो आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा ।
२३४. साधु-साध्वी वस्त्र को स्तम्भ पर, मंच पर, ऊपर की मंजिल पर महल पर भवन के भूमिगृह में अथवा इसी प्रकार के ऊँचे स्थानों पर जोकि ठीक से बँधे न हों, हिलते हों वहाँ वस्त्र न सुखाए ।
234. If a bhikshu or bhikshuni wants to dry clothes in sun he should avoid spreading them on a pillar, platform or scaffold, upper story of a house, roof of a palace, cellar or other such high but unsecured place.
वस्त्रैषणा : पंचम अध्ययन
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Vastraishana: Fifth Chapter
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