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२०६. से भिक्खू वा २ बहुसंभूयाओ ओसहिओ पेहाए तहा वि ताओ णो एवं वएज्जा, तं जहा-पक्का ति वा, णीलिया ति वा, छवीया ति वा, लाइमा ति वा, भज्जिमा ति वा, बहुखज्जा ति वा। एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव णो भासेज्जा। ___२०६. साधु-साध्वी प्रचुर परिमाण में पैदा हुई औषधियों-गेहूँ, चावल आदि के लहलहाते पौधों को देखकर यों न कहे कि ये पक गई हैं या ये अभी नीली-कच्ची या हरी हैं, ये छवि-शोभा वाली हैं, ये अब काटने योग्य हैं, ये भूनने या सेंकने योग्य हैं, ये भलीभाँति खाने योग्य हैं या चिबड़ा बनाकर खाने योग्य हैं। इस प्रकार की सावद्य यावत् जीवहिंसानुमोदिनी भाषा का प्रयोग नहीं करे।
206. When a disciplined bhikshu or bhikshuni sees a plentiful crop of herbs, wheat, rice etc. he should not say-these crops are ripe, these are still greenish and not ripe, these crops have a fresh glow, they are ready to be harvested and roasted, they are ready to be eaten raw or after cooking. He should not utter such sinful and violent language.
२०७. से भिक्खू वा २ बहुसंभूयाओ ओसहीओ पेहाए तहा वि एवं वएज्जा, तं जहा-रूढा ति वा बहुसंभूयाइ वा, थिरा ति वा, ऊसढा ति वा, गब्भिया ति वा, पसूया ति वा, ससारा ति वा। एयप्पगारं असावज्जं जाव भासेज्जा।
२०७. साधु या साध्वी को यदि बोलना आवश्यक हो तो औषधियों आदि को देखकर इस प्रकार बोल सकते हैं कि इनमें बीज अंकुरित हो चुके हैं, ये अब जम गई हैं, सुविकसित या रस निष्पन्न हो चुकी हैं या ये ऊपर उठ गई हैं, ये (गर्भ में) भुट्टों; सिरों या बालियों से रहित हैं, अब ये भुट्टों आदि से युक्त हैं या धान्य में दाने पड़ गये हैं। इस प्रकार की निरवद्य यावत् जीव-हिंसारहित भाषा विचारपूर्वक बोल सकते हैं।
207. On seeing (if an occasion to speak about them arises) aforesaid crops, bhikshu or bhikshuni should say—these crops bear seeds now, they are firm, mature and grown; these are without ears and pods, now they have ears and pods or even seeds. He should thoughtfully utter such sinless and benign language.
विवेचन-साधु संयमी एवं अहिंसाव्रती होता है उन्हें सांसारिक लोगों की तरह ऐसी भाषा नहीं बोलनी चाहिए, जिससे दूसरे व्यक्ति हिंसादि पाप में प्रवृत्त हों या किन्हीं जीवों को पीड़ा, भय एवं आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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