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(५) साधुओं का जीवन सुकुमार विभूषा - प्रधान बन जायेगा ।
(६) इतने बहुमूल्य वस्त्र साधारण गृहस्थ के यहाँ मिल नहीं सकते। अतः साधु विशिष्ट धनाढ्य गृहस्थ से भागेगा। वह यदि भक्तिभाव वाला नहीं होगा, तो साधुओं को ऐसे कीमती वस्त्र नहीं देगा और साधु उन्हें परेशान भी करेंगे।
(७) भक्तिमान धनाढ्य गृहस्थ मोल लाकर या विशेष रूप से बुनकरों से बनवाकर देगा |
(८) चमड़े के वस्त्र घृणाजनक, अपवित्र और अमंगल होने से इनका उपयोग साधुओं के लिए उचित एवं शोभास्पद नहीं ।
श्री अभयदेवसूरि ने महामूल्य की परिभाषा इस प्रकार की है - 'पाटलिपुत्र के सिक्के से जिसका मूल्य अठारह मुद्रा ( सिक्का - रुपया) से लेकर एक लाख मुद्रा ( रुपया) तक हो वह महामूल्य वस्त्र होता है। ( स्थानांगसूत्र वृत्ति, पत्र ३२)
विनयपिटक (महावग्ग ) ८/८/१२, पृ. २९८ में शिवि देश में बने 'सिवेय्यक वस्त्र' का उल्लेख है, जो एक लाख मुद्रा में मिलता था ।
Elaboration-In these aphorisms taking clothes that are very expensive and made of skin has been censured. Following may be the reasons for this
(1) These were produced by harming and killing various types of animal.
(2) Being expensive there always was a fear of theft or snatching by thieves and greedy people.
(3) If there was a demand of such clothes by ascetics more animals and five sensed beings would be killed.
(4) Ascetics could develop fondness and craving for such expensive clothes as also the tendency to hoard these.
(5) The life-style of ascetics would become adornment oriented and permissive.
(6) Such expensive clothes are not available with ordinary citizens. Therefore ascetics will have to approach affluent people. If they are not devoted they will not offer expensive clothes and consequently the ascetics will pester them.
आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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