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Elaboration In this aphorism there is a complete censure of clothes prepared specifically for ascetics or involving aadhakarma fault whether it is purushantarkrit or not. If such cloth is made for Buddhist, Brahmin and other such monks it can be taken by ascetics if it has been used by the donor or is purushantarakrit.
The complete procedure of accepting or rejecting clothes should be taken to be same as that mentioned in the chapter Pindaishana regarding food.
२१४. से भिक्खू वा २ से जं पुण वत्थं जाणेज्जा अस्संजए भिक्खूपडियाए कीयं वा धोयं वा रत्तं वा घटुं वा मटुं वा संमटुं वा संपधूविये वा, तहप्पगारं वत्थं है अपुरिसंतरकडं जाव णो पडिगाहेज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जा पुरिसंतरकडं जाव * पडिगाहेज्जा।
२१४. साधु-साध्वी को वस्त्र के विषय में यह जानना चाहिए कि किसी गृहस्थ ने साधु को देने के निमित्त उसे खरीदा है, धोया है, रँगा है, घिसकर साफ किया है, चिकना या मुलायम बनाया है, संस्कारित किया है, धूप, इत्र आदि से सुवासित किया है, यदि ऐसा
वस्त्र अभी पुरुषान्तरकृत नहीं हुआ है, तो ऐसे अपुरुषान्तरकृत यावत् अनासेवित वस्त्र को र ग्रहण नहीं करे। यदि जाने कि वह वस्त्र पुरुषान्तरकृत यावत् आसेवित हो गया है तो प्रासुक व एषणीय समझकर उसे ग्रहण कर सकता है।
214. A bhikshu or bhikshuni should find about clothes if some householder has bought it, washed it, dyed it, rubbed it to clean or make it smooth or soft, processed it, or made it fragrant with incense or perfume for the purpose of giving it to ascetics. If it is so and such cloth is not purushantarakrit he should not take such unused cloth. If he finds that it is purushantarakrit he may take it considering it to be faultless and acceptable.
विवेचन-इस सूत्र में उत्तरगुण में लगने वाले दोषों से बचने का आदेश है। साधु के लिए खरीदा हुआ, धोया हुआ, रँगा हुआ आदि संस्कारित वस्त्र ग्रहण करने का निषेध है। परन्तु यदि वह वस्त्र पुरुषान्तरकृत हो गया हो तो ग्रहण किया जा सकता है।
पिछले सूत्रानुसार साधु के उद्देश्य से निर्मित वस्त्र तो किसी भी स्थिति में ग्राह्य नहीं है। किन्तु र यदि वस्त्र साधु के लिए खरीदकर अन्य क्रियाएँ की गई हों तो वह पुरुषान्तरकृत होने पर ग्राह्य
माना गया है। (विवेचन-आचार्य श्री आत्माराम जी म., पृ. ११८४) आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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