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avaniyavayanam-words of praise with criticism, e.g., he is handsome but corrupt. Avaniya-uvaniyavayanam--words of criticism with praise, e.g., he is ugly but honest.
चार प्रकार की भाषा : विहित-अविहित
१८२. इच्चेयाइं आययाणाई उवाइकम्म।
अह भिक्खू जाणेज्जा चत्तारि भासज्जायाई, तं जहा - सच्चमेगं पढमं भासजायं, बीयं मोसं, तइयं सच्चामोसं, जं णेव सच्चं णेव मोसं णेव सच्चामोसं णाम तं चउत्थं भासज्जायं ।
से बेमि- जे य अईया जे य पडुप्पण्णा जे अणागया अरहंता भगवंतो सव्वे ते एयाणि चेव चत्तारि भासज्जायाइं भासिंसु वा भासंति वा भासिस्संति वा, पण्णविंसु वा ३ सव्वाइं च णं एयाणि अचित्ताणि वण्णमंताणि गंधमंताणि रसमंताणि फासमंताणि चयोवचइयाइं विष्परिणामधम्माइं भवंती त्ति अक्खायाई ।
१८२. भाषा - सम्बन्धी इन दोष स्थानों का त्याग करके (भाषा का प्रयोग करना चाहिए)।
साधु को भाषा के चार भेद भी जान लेना चाहिए। वे इस प्रकार हैं - ( १ ) सत्य भाषा, (२) मृषा भाषा, (३) सत्यामृषा, और (४) असत्यामृषा - जो न सत्य है, न असत्य है और नही सत्यामृषा (व्यवहारभाषा) है।
मैं यह जो कुछ कहता हूँ उसे - भूतकाल में जितने भी तीर्थंकर भगवान हो चुके हैं, वर्तमान में जो भी तीर्थंकर भगवान हैं और भविष्य में जो भी तीर्थंकर भगवान होंगे, उन सबने इन्हीं चार प्रकार की भाषाओं का कथन किया है, कथन करते हैं और कथन करेंगे; अथवा उन्होंने यही प्ररूपण किया है, करते हैं और करेंगे। तथा ये सब भाषा के पुद्गल अचित्त हैं, वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले हैं, तथा चय- उपचय ( वृद्धि - ह्रास अथवा मिलने - बिछुड़ने ) वाले एवं विविध प्रकार के परिणामों को धारण करने वाले हैं।
FOUR TYPES OF SPEECH
182. A bhikshu or bhikshuni should avoid these faults related to speech.
A bhikshu or bhikshuni should also know about the four kinds of speech. They are—(1) true, (2) untrue (3) true-untrue,
आचारांग सूत्र (भाग २)
( २८४ )
Acharanga Sutra (Part 2)
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