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१८६. संयमशील साधु या साध्वी किसी पुरुष को आमंत्रित (सम्बोधित) करते हुए, उसके न सुनने पर (खीजकर) उसे इस प्रकार न कहे-“अरे होल (मूर्ख) ! रे गोले ! हे वृषल (शूद्र) ! हे कुपक्ष (दास या निन्द्यकुलीन) ! अरे घटदास (दासीपुत्र) ! या ओ कुत्ते !
ओ चोर ! अरे गुप्तचर ! अरे कपटी ! ऐसे ही तुम हो, ऐसे ही तुम्हारे माता-पिता हैं।" विवेकशील साधु इस प्रकार की सावध, सक्रिय यावत् जीवोपघातिनी भाषा न बोले। CENSURE OF SINFUL SPEECH
186. When he does not get a response on calling someone, a bhikshu or bhikshuni should not, out of irritation, say—You fool! You slave ! You wretch ! You low-born ! You son-of-a-maid, You dog ! You thief ! You spy ! You cheat ! So are you and so are your parents.” A disciplined ascetic should avoid such sinful (etc. up to violent to beings) speech.
१८७. से भिक्खू वा २ पुमं आमंतेमाणे आमंतिए वा अपडिसुणेमाणे एवं वइज्जाअमुगे ति वा, आउसो ति वा, आउसंतारो ति वा, सावगे ति वा, उवासगे ति वा, धम्मिए ति वा, धम्मप्पिए ति वा। एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोवघाइयं अभिकंख भासेज्जा।
१८७. संयमशील साधु या साध्वी किसी पुरुष को आमन्त्रित कर रहे हो, और यदि वह आमंत्रण न सुने तो उसे इस प्रकार सम्बोधित करे-“हे अमुक भाई ! हे आयुष्मन् ! हे आयुष्मानो ! ओ श्रावक ! हे उपासक ! हे धार्मिक ! हे धर्मप्रिय !" इस प्रकार की निरवद्य यावत् पापरहित भाषा विचारपूर्वक बोलना चाहिए। ___187. When he does not get a response on calling someone, a bhikshu or bhikshuni should say—“O mister.... ! O long lived one ! O long lived ones ! O layman ! O devotee ! O religious one! O devout one !” A disciplined ascetic should thoughtfully use such speech that is not sinful (etc. up to violent to beings).
१८८. से भिक्खू वा २ इत्थिं आमंतेमाणे आमंतिए य अप्पडिसुणेमाणी णो एवं वइज्जा-होली ति वा, गोली ति वा, इत्थिगमेणं णेयव्वं।
१८८. साधु या साध्वी किसी महिला को बुला रहे हों, आवाज देने पर भी यदि वह नहीं सुने तो उसे ऐसे नीच सम्बोधनों से सम्बोधित नहीं करे-“अरी होली (मूर्खे) ! अरी भाषाजात : चतुर्थ अध्ययन
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Bhashajata : Fourth Chapter
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