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बीओ उद्देसओ
35. Asis. 63 64 64 68 sdes
द्वितीय उद्देशक
सावद्य-निरवद्य भाषा-विवेक
१९२. से भिक्खू वा २ जहा वेगइयाई रुवाई पासेज्जा तहा वि ताइं णो एवं इज्जा - गंडी गंडी ति वा, कुट्ठी कुट्ठी ति वा, जाव महुमेहुणी ति वा, हत्थच्छिण्णं हत्थच्छिणेति वा, एवं पायच्छिण्णे ति वा, कण्णच्छिण्णे ति वा, नक्कच्छिण्णे ति वा, उट्ठच्छिण्णेति वा । जे यावऽन्ने तहप्पगारा एयप्पगाराहिं भासाहिं बुइया २ कुप्पंति माणवा ते यावि तहप्पगाराहिं भासाहिं अभिकंख णो भासेज्जा ।
LESSON TWO
१९२. संयमशील साधु-साध्वी यद्यपि अनेक रूपों को देखते हैं तथापि उन्हें देखकर वे इस प्रकार की भाषा न बोलें। जैसे कि गण्डी । (कण्ठमाला) गण्डमाला रोग से ग्रस्त या जिसका पैर सूज गया हो, उसको गण्डी, कुष्ठ रोग से पीड़ित को कोढ़ी, यावत् मधुमेह से पीड़ित रोगी को मधुमेही कहकर नहीं पुकारे। जिसका हाथ कटा हुआ हो उसे हाथकटा, पैर कटे को लँगड़ा, नाक कटे हुए को नकटा, कान कटे को कनकटा और ओठ कटे हुए को ओठकटा नहीं कहना चाहिए। ये तथा अन्य जितने भी इस प्रकार के (विकलांग) हों, उन्हें इस प्रकार आघातजनक शब्द बोलने पर उनके मन को आघात पहुँचता है, कुपित भी हो सकते हैं। अतः विवेकशील मुनि इस प्रकार की भाषा का प्रयोग न करे ।
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PRUDENCE OF SINFUL AND BENIGN SPEECH
192. Disciplined bhikshu or bhikshuni when sees a variety of forms he should avoid the use of such language He should not address a man with swollen leg as plump-legged, a man suffering from leprosy as leper, or one suffering from diabetes as diabetic. He should not call a person with amputated hand as cripple, one with amputated leg as lame, a person with cut nose, ears, lips as nose-less, ear-less, lip-less, respectively. These or any other type of disabled may get hurt or angry if such impolite words are used. Therefore a prudent ascetic should avoid use of such language.
१९३. से भिक्खू वा २ जहा वेगइयाई रुवाई पासेज्जा तहा वि ताई एवं वइज्जा, तं जहा-ओयंसी ओयंसी ति वा, तेयंसी तेयंसी ति वा, जसंसी जसंसी ति वा, वच्चंसी
आचारांग सूत्र (भाग २)
( २९२ )
Acharanga Sutra (Part 2)
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