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and (4) neither true nor untrue or true-untrue (normal language in use).
I so pronounce that all the omniscients of the past have stated, spoken, propagated and elaborated; all the omniscients of the present state, speak, propagate and elaborate; and all the omniscients of the future will state, speak, propagate and elaborate these four kinds of speech. Also, all the speechparticles are insentient, have properties of colour, smell, taste and touch, and undergo growth and decay or integration and disintegration causing a variety of effects.
१८३. से भिक्खू वा २ से जं पुण जाणेज्जा - पुव्वं भासा अभासा, भासिज्जमाणी भासा भासा, भासासमयवीइकंतं च णं भासिया भासा अभासा ।
१८३. साधु-साध्वी को भाषा के विषय में यह भी जानना चाहिए कि ( भाषावर्गणा के एकत्रित पुद्गल) बोलने से पूर्व अभाषा है, बोलते समय भाषा भाषा कहलाती है तथा बोलने के पश्चात् बोली हुई भाषा अभाषा हो जाती है।
183. A bhikshu or bhikshuni should also know about speech (the combination of the speech-particles) that before utterance it is non-speech (or pre-speech), during utterance it is speech and after utterance it is non-speech (post-speech).
१८४. से भिक्खू वा २ से जं पुण जाणिज्जा - जा य भासा सच्चा १, जा य भासा मोसा २, जाय भासा सच्चामोसा ३, जा य भासा असच्चाऽमोसा ४, तहप्पगारं भासं सावज्जं सकिरियं कक्कसं कडुयं णिट्ठरं फरुसं अण्हयकरिं छेयणकरिं भेयणकरिं परियावणकरिं उद्दवणकरिं भूतोवघाइयं अभिकंख णो भासेज्जा ।
१८४. साधु-साध्वी को भाषा के इन भेदों को जानना चाहिए - ( १ ) जो भाषा सत्य है, (२) जो भाषा मृषा है, (३) जो भाषा सत्यामृषा है, (४) अथवा जो भाषा असत्यामृषा ( व्यवहारभाषा) है। इन चारों भाषाओं में से जो मृषा - असत्य और मिश्रभाषा है, उसका व्यवहार साधु-साध्वी के लिए सर्वथा वर्जनीय है। केवल सत्य और असत्यामृषा ( व्यवहारभाषा ) का प्रयोग ही उसके लिए आचरणीय है । उसमें भी यदि सत्यभाषा - कभी सावद्य, अनर्थदण्ड क्रियायुक्त, कर्कश, कटुक, निष्ठुर, कर्मों की आनवकारिणी तथा छेदन,
भाषाजात : चतुर्थ अध्ययन
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Bhashajata: Fourth Chapter
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