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१७७. ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु-साध्वी को मार्ग में अनेक दिनों में पार करने योग्य विकट अटवी आ जाये तो उस अटवी-मार्ग के विषय में साधु पहले यह जान ले कि इस अटवी-मार्ग में अनेक चोर इकट्ठे होकर साधु के उपकरण छीनने की दृष्टि से आ जाते हैं। उस अटवी-मार्ग में वे चोर इकट्ठे होकर आ जाएँ तो साधु उनसे भयभीत होकर उन्मार्ग में न जाए, वह किसी बाड़ आदि का आश्रय न खोजे तथा निर्भय और शरीर के प्रति अनासक्त होकर शरीर और उपकरणों का व्युत्सर्ग करके समाधिभाव में स्थिर रहता हुआ यतनापूर्वक विचरण करे। NO FEAR OF BANDITS ___177. While wandering from one village to another, when a bhikshu or bhikshuni approaches the edge of some desolate area that can be crossed in many days, he should know in advance that in such areas many bandits come to snatch away asceticequipment. If it so happens that a group of bandits approach the ascetic; out of fear, he should not take to a wrong path and should also not seek shelter behind a fence (etc.). Instead he should be free of any attachment for his body and equipment, dissociate his mind from his body and remain firm in his meditation.
१७८. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, अंतरा से आमोसगा संपिडिया गच्छेज्जा, ते णं आमोसगा एवं वएज्जा आउसंतो समणा ! आहर एवं वत्थं वा ४, देहि, णिक्खिवाहि, तं णो देज्जा, णिक्खिवेज्जा, णो वंदिय २ जाएज्जा, णो अंजलिं कटु जाएज्जा, णो कलुणपडियाए जाएज्जा, धम्मियाए जायणाए जाएज्जा, तुसिणीयभावेण वा उवेहिज्जा।
१७८. ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु के पास यदि मार्ग में चोर आदि मिलकर 2 आये और कहें कि “आयुष्मन् श्रमण ! ये वस्त्र, पात्र, कंबल और पाद-प्रोंछन आदि लाओ
हमें दे दो या यहाँ पर रख दो।" इस प्रकार कहने पर साधु वे (उपकरण) उन्हें न दे अपितु भूमि पर रख दे, फिर उन उपकरणों को वापस लेने के लिए उनकी स्तुति (प्रशंसा) करके, हाथ जोड़कर या दीन-वचन कहकर याचना न करे। यदि वापस लेना हो तो उन्हें धर्म का मार्ग बताकर माँगे अथवा मौन धारण करके रहे। ___178. While wandering from one village to another, when a 3 bhikshu or bhikshuni is approached by bandits and askedॐ ईर्या : तृतीय अध्ययन
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Irya : Third Chapter
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