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विवेचन-जिस नदी आदि का पानी पैरों से चलकर पार किया जा सकता हो उसे आगम में "जंघा संतारिमं'-जंघा बल से संस्तरणीय कहा है। जो पानी वक्षस्थल या पेट से ऊपर आता हो, मस्तक भी डूब जाता हो उस जल को नौका से पार करने का विधान पूर्व सूत्रों में दिया गया है।
वृत्तिकार के अनुसार 'जंघा संतरणीय' का अर्थ है-घुटनों से नीचे भाग तक का पानी। क्योंकि तभी वह एक पैर ऊपर उठाकर एक पैर पानी में रखकर चल सकता है।
नदी पार करते समय यदि उपकरण साथ में लेकर चलना कठिन प्रतीत होता हो तो वह उपकरणों को वहीं छोड़ दे। सार रूप में इन सूत्रों में छह विधियाँ बताई हैं-(१) पहले अपने शरीर का प्रमार्जन करे। फिर एक पैर जल में और एक पैर स्थल में रखकर सावधानी से चले। (२) उस समय शरीर के अंगोपांगों का परस्पर स्पर्श न करे। (३) शरीर की गर्मी शान्त करने या सुखसाता के उद्देश्य से गहरे जल में प्रवेश न करे। (४) उपकरण सहित पार करने की क्षमता न हो तो उपकरणों का त्याग कर दे, क्षमता हो तो उपकरण सहित पार कर जाय। (५) शरीर पर जब तक पानी की एक बूंद भी रहे, तब तक वह नदी के किनारे ही खड़ा रहे। (६) जब शरीर पर से पानी बिलकुल सूख जाये, तब ईर्यापथिम-प्रतिक्रमण करके आगे विहार करे। (वृत्ति पत्रांक ३८०)
Elaboration—The water-body that can be crossed walking is called jangha santariman' (crossed with the help of legs). The water-body that is navel deep, chin deep or head deep should be crossed in a boat following the procedure given in preceding aphorisms.
According to the commentator (Vritti) jangha santaraniya' means knee-deep water. Because only then it can be crossed keeping one foot in water and the other on land.
If the ascetic finds it difficult to cross carrying his equipment, he should abandon the same. In brief, six procedures have been detailed in these aphorisms-(1) First he should clean his body and then walk carefully putting one foot in water and the other on land. (2) While doing so he should avoid touching parts of his body. (3) He should not enter deeper water for pleasure or pacifying heat. (4) Only if it is possible to cross with the load of equipment he may do so otherwise not. (5) As long as there is even a trace of water on his body he should remain standing on the bank. (6) When the body is absolutely dry he should proceed after due atonement (iryapathik pratikraman). (Vi leaf 380) आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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