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जे तत्थ मिगा वा पक्खी वा सरीसिवा वा सीहा वा जलचरा वा थलचरा वा खचरा वा सत्ता ते उत्तसेज्ज वा, वित्तसेज्ज वा, वाडं वा सरणं वा कंखेज्जा, वारे ति मे अयं समणे।
अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जं णो बाहाओ पगिज्झिय २ जाव णिज्झाएज्जा। तओ संजयामेव आयरिय-उवज्झाएहिं सद्धिं गामाणुगामं दूइज्जेज्जा।
१६६. साधु-साध्वियों के मार्ग में विहार करते हुए यदि कच्छ (-नदी के निकटवर्ती नीचे प्रदेश जहाँ खरबूजे आदि के खेत हों) घास संग्रह करने के लिए छोड़ी गई राजकीय भूमि, भूमिगृह, नदी आदि से वेष्टित भूभाग, निर्जल प्रदेश का अरण्य, गहन दुर्गम वन, गहन दुर्गम पर्वत, पर्वत पर भी दुर्गम स्थान, कूप, तालाब, द्रह (झीलें), नदियाँ, बावड़ियाँ, पुष्करिणियाँ, दीर्घिकाएँ (लम्बी बावड़ियाँ), गहरे और टेढ़े-मेढ़े जलाशय, बिना खोदे तालाब, सरोवर, सरोवर की पंक्तियाँ और बहुत-से मिले हुए तालाब हों तो इनको भी अपनी भुजाएँ ऊँची उठाकर, अँगुलियों से संकेत करके तथा शरीर को ऊँचा-नीचा करके ताक-ताककर न देखे। केवली भगवान ने यह कर्मबन्ध का कारण बताया है।
(क्योंकि) ऐसा करने से जो इन स्थानों में मृग, पशु, पक्षी, साँप, सिंह, जलचर, स्थलचर, खेचर, जीव रहते हैं, वे साधु की इन चेष्टाओं को देखकर त्रास पायेंगे, किसी बाड़ आदि की शरण में छुप जाना चाहेंगे। वहाँ रहने वालों को साधु के विषय में शंका होगी कि यह साधु हमें हटा रहा है, इसलिए तीर्थंकरादि ज्ञानियों ने भिक्षुओं के लिए पहले ही उपदेश दिया है कि बाँहें ऊँची उठाकर यावत् शरीर को ऊँचा-नीचा करके साधु न देखे। अपितु आचार्य और उपाध्याय के साथ ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ संयम का पालन करे। ___166. While walking on the way if a bhikshu or bhikshuni comes across furrows near a river, barns, houses, river islands, arid forest, dense forest, difficult mountains, formidable heights on mountains, well, pond, lake, rivers, pools, streams, long pools, deep and oblong water tanks and other types of water-bodies, he should not look or peep at them raising his arms, pointing with fingers or bowing up and down. The omniscient has said that that is a cause of bondage of karmas.
This is because by doing so various beings, such as deer, animals, birds, snakes, lions and other reptiles, animals and ईर्या : तृतीय अध्ययन
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Irya : Third Chapter
AVhOVA
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