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तइओ उद्देसओ
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तृतीय उद्देशक
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मार्ग में वप्र आदि अवलोकन का निषेध
१६५. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से वप्पाणि वा फलिहाणि वा जाव दरीओ वा कूडागाराणि वा पासायाणि वा नूमगिहाणि वा रुक्खगिहाणि वा पव्वयगिहाणि वा रुक्खं वा चेइयकडं थूभं वा चेइयकडं आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा णो बाहाओ पगिज्झिय २ अंगुलियाए उद्दिसिय २ ओणमिय २ उण्णमिय २ णिज्झाएज्जा। तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ।
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१६५. भिक्षु या भिक्षुणी विहार करते हुए मार्ग में खेत के क्यारे, गड्ढे, गुफाएँ या भू-गर्भ तथा कूटागार (पर्वत पर बने घर), प्रासाद, भूमिगृह, वृक्षों को काट-छाँटकर बनाए हुए गृह, पर्वतीय गुफा, वृक्ष के नीचे बना हुआ व्यन्तरादि चैत्य- स्थल, चैत्यमय स्तूप, लोहकार आदि की शाला, आयतन - देवालय एवं भवनगृह आयें तो इनको अपनी बाँहें ऊपर उठाकर, अँगुलियों से निर्देश करके, शरीर को ऊँचा - नीचा करके ताक - ताककर न देखे, किन्तु यतनापूर्वक अपने विहार में प्रवृत्त रहे।
LESSON THREE
CENSURE OF LOOKING AROUND
165. While walking on the way if a bhikshu or bhikshuni comes across furrows in a farm, ditches, caves, subterranean or mountain dwellings, mansions, cellars, tree-houses, cavern, temple under a tree, stupa like temple, smithy or other workshops, temple and other abodes, he should not look upon or peep at them raising his arms, pointing with fingers or bowing up and down. Instead he should continue his itinerant way taking due care.
१६६. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से कच्छाणि वा दवियाणि वाणूमाणि वा वलयाणि वा गहणाणि वा गहणविदुग्गाणि वा वणाणि वा वणविदुग्गाणि वा पव्वयाणि वा पव्वयविदुग्गाणि वा अगडाणि वा तलागाणि वा दहाणि वा नदीओ वा वावीओ वा पोक्खरणीओ वा दीहियाओ वा गुंजालियाओ वा सराणि वा सरपंतियाणि वा; सरसरपंतियाणि वा णो बाहाओ पगिज्झिय २ जाव णिज्झाएज्जा । केवली बूया-आयाणमेयं।
आचारांग सूत्र (भाग २)
( २६२ )
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Acharanga Sutra (Part 2)
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