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HTTACTRESPGopalamla
हिंन पशुओं से भयभीत न हों
१७६. से भिक्खू वा २ गामाणुगाम दूइज्जमाणे अंतरा से गोणं वियालं पडिपहे . पेहाए जाव चित्ताचेल्लडयं वियालं पडिपहे पेहाए णो तेसिं भीओ उम्मग्गेणं गच्छेज्जा, णो मग्गाओ उम्मग्गं संकमज्जा, णो गहणं वा वणं वा दुग्गं वा अणुपविसेज्जा, णो । रुक्खंसि दुरूहेज्जा, णो महइमहालयंसि उदयसि कायं विओसेज्जा, णो वाडं वा सरणं वा सेणं वा सत्थं वा कंखेज्जा, अप्पुस्सुए जाव समाहीए। ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा।
१७६. साधु-साध्वी को विहार करते हुए मार्ग में उन्मत्त साँड, साँप यावत् चीते आदि। हिंसक पशुओं को सामने आते देखकर उनसे भयभीत नहीं होना चाहिए तथा उनसे डरकर उन्मार्ग से नहीं जाना चाहिए और न ही एक मार्ग को छोड़कर दूसरे मार्ग पर जाना चाहिए तथा न तो गहन वन एवं विषम स्थान में प्रवेश करना चाहिए, न ही वृक्ष पर चढ़ना चाहिए और न ही गहरे और विस्तृत जल में प्रवेश करना चाहिए। (तथा सुरक्षा के लिए) किसी बाड़ की शरण, सेना का आश्रय भी नहीं ढूँढ़ना चाहिए अपितु शरीर के प्रति राग-द्वेषरहित होकर काया का व्युत्सर्ग कर समाधिभाव में स्थिर रहना चाहिए।
NO FEAR OF FIERCE ANIMALS ___176. While wandering from one village to another, when a bhikshu or bhikshuni is faced with approaching mad bull, snake, leopard and other fierce animals he should not be frightened. Out of fear he should not take to a wrong path, not leave one path and take to another, not enter into deep forest or other intractable place, not climb a tree or enter a deep and large water-body. He should also not seek shelter behind a fence or with an army for his security. Instead, he should be free of any attachment for his body, dissociate his mind from his body and remain firm in his meditation.
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दस्युओं से निर्भय रहे
१७७. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, अंतरा से विहं सिया, से जं पुण विहं जाणेज्जा, इमंसि खलु विहंसि बहवे आमोसगा उवकरणपडियाए संपडियापि गच्छेज्जा, णो तेहिं भीओ उम्मग्गं चेव गच्छेज्जा जाव समाहीए। ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। आचारांग सूत्र (भाग २)
( २७२ )
Acharanga Sutra (Part 2)
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