________________
pical
१७३. से भिक्खू वा गामाणुगामं दूइज्जमाणा, अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा, ते णं पाडिपहिया एवं वइज्जा आउसंतो समणा ! अवियाइं एत्तो पsिहे पासह जवसाणि वा जाव से णं वा विरूवरूवं संणिविट्टं, से आइक्खह जाव दूइज्जेज्जा ।
१७३. विहार करते हुए साधु-साध्वी को मार्ग में आते हुए पथिक आकर पूछे कि " आयुष्मन् श्रमण ! क्या आपने इस मार्ग में जौ, गेहूँ आदि धान्यों का ढेर, शासकों के सैन्य के पड़ाव आदि देखे हैं ? देखे हों तो हमें बताओ ।" इस पर साधु मौन धारण करके रहे यावत् ग्रामानुग्राम विहार करता रहे।
173. While wandering from one village to another, when a bhikshu or bhikshuni is approached by a traveller and asked"Long lived Shraman! Have you seen heaps of wheat, barley and other grains and army camps etc. on this path? If yes, please tell us." At this the ascetic should ignore them silently and resume his wandering with due care.
१७४. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया जाव आउसंतो समणा ! केवतिए एत्तो गामे वा जाव रायहाणिं ? से आइक्खह जाव दूइज्जेज्जा ।
१७४. विहार करते हुए साधु-साध्वी को प्रातिपथिक मिल जायें और वे पूछें कि "यह गाँव कैसा है या कितना बड़ा है यावत् राजधानी कैसी है ?" आदि प्रश्न पूछें तो उनकी बात का उत्तर न दे। मौन धारण करके रहे । संयमपूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करे ।
174. While wandering from one village to another, when a bhikshu or bhikshuni is approached by a traveller and asked"Long lived Shraman! How large and what type of village or city is this?" Or other such questions. At this the ascetic should ignore them silently and resume his wandering.
१७५. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जेज्जा अंतरा से घाडिपहिया जाव आउसंतो समणा ! केवइए एत्तो गामस्स वा नगरस्स वा जाव रायहाणीए वा मग्गे ? से आइक्खह तहेव जाव दूइज्जेज्जा ।
१७५. विचरण करते साधु-साध्वी को मार्ग में आते हुए कुछ पथिक मिल जायें और वे पूछें - " आयुष्मन् श्रमण ! यहाँ से ग्राम यावत् राजधानी कितनी दूर है तथा यहाँ से ग्राम
ईर्या: तृतीय अध्ययन
( २६९ )
Irya: Third Chapter
Jain Education International
For Private Personal Use Only
www.jainelibrary.org