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जे तत्थ सव्वराइणिए से भासेज्ज वा वियागरेज्ज वा। राइणियस्स भासमाणस्स वा वियागरेमाणस्स वा णो अंतरा भासं भासेज्जा। ततो संजयामेव अहाराइणियाए गामाणुगामं दूइज्जेज्जा।
१७०. रलाधिक साधुओं के साथ विहार करने वाले साधु को मार्ग में आते हुए यदि कुछ पथिक मिलें और वे पूछे कि-"आयुष्मन् श्रमण ! आप कौन हैं, कहाँ से आये हैं और कहाँ जायेंगे?"
तब जो उन साधुओं में सबसे बड़े साधु हैं, वे उनको उत्तर देंगे। जब रत्नाधिक उत्तर देते हों, तब अन्य साधु बीच में न बोले। किन्तु रत्नाधिक का ध्यान रखता हुआ उनके साथ विहार करे। ____170. While wandering with senior ascetics, when a bhikshu or bhikshuni is approached by a traveller and asked—“Long lived Shraman ! Who are you, where from do you come and where will
you go?"
Then the senior most ascetic will provide the answer. When they are doing so, the ascetic should not intervene. Instead he should walk with them observing the discipline of movement as well as protocol.
हिंसाजनक प्रश्नों में मौन एवं भाषा-विवेक ___ १७१. से भिक्खू वा २ दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा, ते णं पाडिपहिया एवं वएज्जा-आउसंतो समणा ! अवियाई एत्तो पडिपहे पासह मणुस्सं वा गोणं वा महिसं वा पसुं वा पक्खिं वा सरीसवं वा जलयरं वा, से तं मे आइक्खह, दंसेह। तं णो आइक्खेज्जा, णो दंसेज्जा। णो तस्स तं परिजाणेज्जा, तुसिणीए उवेहेज्जा। जाणं वा णो जाणं ति वदेज्जा। ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा।
१७१. ग्रामानुग्राम विहार करते समय संयमी साधु-साध्वी के मार्ग में कुछ पथिक आ जाएँ और वे यों पूछे-“आयुष्मन् श्रमण ! क्या आपने इस मार्ग में किसी मनुष्य को, मृग को, भैंसे को, पशु या पक्षी को, सर्प को या किसी जलचर जीव को जाते हुए देखा है? यदि देखा हो तो हमें बतलाओ कि वे किस ओर गये हैं, हमें दिखाओ।" तब साधु न तो उन्हें कुछ बतलाए न ही उनकी बात को स्वीकार करे, अपितु उपेक्षापूर्वक मौन रहे। अथवा जानता हुआ भी यह न कहे कि मैं नहीं जानता। फिर यतनापूर्वक विहार करे। ईर्या : तृतीय अध्ययन
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Irya : Third Chapter
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