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birds dwelling there will be disturbed and would seek hiding places. Also, others living there will become apprehensive that this ascetic is trying to displace them. Therefore Tirthankars and other sages have said that an ascetic should not look around raising his hands (as mentioned). Instead, in the company of acharya and upadhyaya, he should continue his itinerant way taking due care.
विवेचन-इन दो सूत्रों में साधु की विहारचर्या में संयम के विषय में निर्देश किया गया है। साधु-जीवन में प्रत्येक प्रवृत्ति के पीछे प्रेक्षा-संयम, इन्द्रिय-संयम एवं अंगोपांग-संयम की बात को बराबर दुहराया गया है। साधु को विहार करते समय अपनी आँखों पर, अँगुलियों पर, हाथ-पैरों पर एवं सारे शरीर पर संयम रखने की प्रेरणा दी है, साधु का ध्यान केवल अपने विहार या मार्ग की ओर होना चाहिए। वृत्तिकार कहते हैं-चक्षु आदि के असंयम से साधु के सम्बन्ध में वहाँ के निवासी लोगों को शंका-कुशंका पैदा हो सकती है कि यह चोर है, गुप्तचर है। यह साधु-वेश में अंजितेन्द्रिय है। इसके अतिरिक्त वहाँ रहने वाले पशु-पक्षी डरेंगे, अनेक त्रस्त होकर इधर-उधर भागेंगे, शरण ढूँदेंगे। भागते हुए पशु-पक्षियों को कोई शिकारी पकड़कर मार भी सकता है।
Elaboration - These two aphorisms contain instructions about discipline during wanderings. With every activity of ascetic life, emphasis has been given to disciplines of mind, senses and body. Ascetics have been advised to exercise complete control over their eyes, fingers, limbs and other parts of the body while wandering. His attention should be focussed on his wandering or the path. The commentator (Vritti) says-Indiscipline of eyes and other parts of the body may give rise to doubts in the minds of the local people that this is a thief or a spy or an impostor. Besides this, animals and other creatures living there will be disturbed and run for another shelter. During this displacement they might be trapped or killed by hunters.
विशेष शब्दों के अर्थ-कूडागाराणि-रहस्यमय गुप्त स्थान अथवा पर्वत के कूट (शिखर) पर बने हुए गृह। दवियाणि-अटवी में घास के संग्रह के लिए बने हुए मकान। णूमाणि-भूमिगृह। 5 वणयाणि-नदी आदि से वेष्टित भूभाग। गहणाणि-निर्जल प्रदेश, रन। गहणविदुग्गाणि-रन में सेना
के छिपने के स्थान के कारण दुर्गम। वणविदुग्गाणि-नाना जाति के वृक्षों के कारण दुर्गम स्थल।
पव्वयदुग्गाणि-अनेक पर्वतों के कारण दुर्गम प्रदेश। गुंजालियाओ-लम्बी, गम्भीर तथा टेढ़ी-मेढ़ी * जल की वापिकाएँ। आचारांग सूत्र (भाग २)
( २६४ )
Acharanga Sutra (Part 2)
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