________________
IMG........
NAI .
.. N
irERHEURTIRLITY
१६२. साधु-साध्वी विहार करते हुए जाने, मार्ग में यदि जौ, गेहूँ आदि धान्यों के ढेर 6. हों, बैलगाड़ियाँ या रथ पड़े हों, स्वदेश-शासक या परदेश-शासक की सेना के नाना प्रकार
के पड़ाव पड़े हों, तो उन्हें देखकर यदि कोई दूसरा (निरापद) मार्ग हो तो उसी मार्ग से यतनापूर्वक जाए, किन्तु उस सीधे दोषयुक्त मार्ग से न जाये। ___162. An itinerant bhikshu or bhikshuni should find if there are heaps of grains such as barley and wheat, bullock-carts or chariots or variety of camps of friendly or hostile armies. If it is so he should not take such direct but difficult path when an alternative path is available.
१६३. से णं से परो सेणागओ वइज्जा आउसंतो ! एस णं समणे सेणाए अभिचारियं करेइ, से णं बाहाए गहाय आगसह। से णं परो बाहाहिं गहाय आगसेज्जा, तं णो सुमणे सिया जाव समाहीए। ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा।
१६३. क्योंकि सेना के पड़ाव वाले मार्ग से जाने पर सम्भव है, साधु को देखकर कोई सैनिक किसी दूसरे सैनिक से कहे-“आयुष्मन् ! यह श्रमण हमारी सेना का गुप्त भेद ले रहा है, अतः इसकी बाहें पकड़कर खींचो अथवा उसे घसीटो।" तब वह सैनिक साधु को बाहें पकड़कर खींचने या घसीटने लगे, उस समय साधु अपने मन में न प्रसन्न हो न ही
रुष्ट; बल्कि समभाव एवं समाधिपूर्वक कष्ट सह लेना चाहिए और यतनापूर्वक विचरण न करते रहना चाहिए।
_____163. This is because it is possible that on seeing an ascetic one soldier may tell to another-"Long lived one ! This Shraman is spying upon our army. Hold him by his arms and drag him here." In case it so happens that he is held by arms and dragged, the ascetic should neither be happy nor dejected. He should tolerate the affliction with equanimity and resume his itinerant way taking due care.
१६४. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे, अंतरा से पाडिवहिया उवागच्छेज्जा, ते णं पाडिवहिया एवं वएज्जा-आउसंतो समणा ! केवइए एस गामे वा जाव रायहाणी वा, केवइया एत्थ आसा, हत्थी, गामपिंडोलगा, मणुस्सा परिवसंति ?
से बहुभत्ते बहुउदए बहुजणे बहुजवसे ? से अप्पभत्ते अप्पुदए अप्पजणे अप्पजवसे ? र एयप्पगाराणि पसिणाणि पुट्ठो णो आइक्खेज्जा, एयप्पगाराणि पसिणाणि णो पुच्छेज्जा। . ईर्या : तृतीय अध्ययन
( २५९ )
Irya : Third Chapter
•1-
COPEGORIPersoadesorrGPotorologerouTO OTPSARE
AD
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org