________________
difficult to walk and it is hard even to find a path. In such conditions an ascetic should not move from one village to another. Instead, he should spend the monsoon season staying at one place (village).
१२८. से भिक्खू वा २ से जं पुण जाणेज्जा गामं वा जाव रायहाणिं वा, इमंसि खलु गामंसि वा जाव रायहाणिंसि वा णो महइ विहारभूमि, णो महइ वियारभूमि, णो सुलभे पीढ - फलग - सेज्जा - संथारए, णो सुलभे फासुए उछे अहेसणिज्जे, जत्थ बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा उवागया उवागमिस्संति च, अच्चाइण्णा वित्ती, णो पण्णस्स णिक्खमण जाव चिंताए । सेवं णच्चा तहप्पगारं गामं वा नगरं वा जाव रायहाणिं वा णो वासावासं उवल्लिएज्जा ।
१२८. साधु-साध्वी जहाँ वर्षावास करना चाहें उस ग्राम, नगर यावत् राजधानी के विषय में भलीभाँति जान लेना चाहिए कि जिस ग्राम, नगर यावत् राजधानी में एकान्त में स्वाध्याय करने के लिए विशाल भूमि न हो, मल-मूत्र विसर्जन के योग्य निर्दोष भूमि न हो, पीठ (चौकी), फलक (पट्टे), शय्या एवं संस्तारक की प्राप्ति सुलभ न हो और न ही प्रासुक, निर्दोष एवं एषणीय आहार- पानी ही सुलभ हो, जहाँ पर बहुत-से श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, दरिद्र न ही भिखारी लोग हों, कुछ आ गये हों, दूसरे आने वाले हों, जिस कारण मार्गों पर जनता की भीड़ हो, साधु-साध्वी को भिक्षा आदि आवश्यक कार्यों से अपने स्थान से निकलना और प्रवेश करना भी कठिन हो, स्वाध्याय आदि क्रियाएँ भी निरुपद्रव न हो सकती हों, ऐसे ग्राम, नगर आदि में साधु-साध्वी वर्षावास व्यतीत न करे।
128. A bhikshu or bhikshuni should find about the village, city or capital where he wants to spend a monsoon-stay if that village or city or capital does not have large area for studies in solitude; fault-free land for disposing excreta; easy availability of stool, plank, place of stay and bed; availability of pure, fault-free, and acceptable food. He should also find whether already there are_numerous Shramans, Brahmins, guests, destitute and beggars; many more have come; and many are likely to come and because of this the roads are crowded, it is difficult for ascetics to come out of or return to their place of stay for alms collection and other necessary work; and even studies and essential activities cannot be performed without disturbance. If it is so, the bhikshu ईर्या: तृतीय अध्ययन ( २२९ )
Irya: Third Chapter
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org