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बीओ उद्देसओ
द्वितीय उद्देशक
LESSON TWO
नौकारोहण में उपसर्ग आने पर : जल-तरण
१४६. से णं परो णावागओ णावागयं वइज्जा-आउसंतो समणा ! एयं ता तुमं छत्तगं वा जाव चम्मछेयणगं वा गेण्हाहि, एयाणि ता तुम विरूवरूवाणि सत्थजायाणि धारेहि, एयं ता तुमं दारगं वा दारिगं वा पज्जेहि। णो से तं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा।
१४६. नौकारूढ़ मुनि से नौका में बैठे हुए गृहस्थ आदि यदि कहें कि “आयुष्मान् श्रमण ! तुम हमारे छत्र, भाजन, बर्तन, दण्ड, लाठी, योगासन, नलिका, वस्त्र, यवनिका, मृगचर्म, चमड़े की थैली अथवा चर्म-छेदनक शस्त्र को तो पकड़कर रखो; इन विविध प्रकार के शस्त्रों को सँभालकर रखना अथवा हमारे इन बालक या बालिकाओं को पानी पिला दो (या खिलाओ-पिलाओ)।" साधु उनके वचनों को सुनकर स्वीकार न करे, मौन धारण करके बैठा रहे।
Amiri
IN FACE OF AFFLICTIONS
146. If householders or others in a boat tell to the ascetic"Long lived Shraman ! Please hold our umbrella, bowl, pot, stick, staff, mattress, pipe, dress, curtain, piece of leather, leather bag or chisel and take proper care; or feed water to these children.” The ascetic should not comply with this request and silently ignore it.
१४७. से णं परो णावागए णावागयं वइज्जा-आउसंतो ! एस णं समणे णावाए भंडभारिए भवइ, से णं बाहाए गहाय णावाओ उदगंसि पक्खिवेज्जा। एतप्पगारं निग्घोसं सोच्चा णिसम्म से य चीवरधारी सिया खिप्पामेव चीवराणि उव्वेढेज्ज वा णिव्वेढेज्ज वा, उप्फेसं वा करेज्जा।
१४७. (साधु का ऐसा उदासीन व्यवहार देखकर) यदि नौकारूढ़ व्यक्ति नौका पर बैठे अन्य यात्रियों से इस प्रकार कहे-“आयुष्मन् गृहस्थ ! यह श्रमण भाण्ड-पात्र की तरह नौका पर केवल भारभूत है, (न तो कुछ सुनता है, न कोई काम करता है) अतः इसकी बाँहें पकड़कर नौका से बाहर जल में फेंक दो।'' इस प्रकार के वचन सुनकर यदि वह ईर्या : तृतीय अध्ययन
( २४७ )
Irya : Third Chapter
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