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vegetation, water and sand yet to be uncontaminated on the path. If it is so and an alternative path free of beings is available he should always take that alternative path with due care and not the path that is straight but infested with beings. However, if no alternative path is available he may take the available one with due care.
मार्ग में दस्यु आदि के उपद्रव
१३४. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे, अंतरा से विरूवरूवाणि पच्चंतिगाणि दस्सुगायतणाणि मिलक्खूणि अणारियाणि दुस्सन्नप्पाणि दुप्पन्नवणिज्जाणि अकालपडिबोहीणि अकालपरिभोईणि, सइ लाढे विहाराए संथरमाणेहिं जणवएहिं णो विहारबत्तियाए पवज्जेज्जा गमणाए । केवली बूया - आयाणमेयं ।
ते णं बाला ‘अयं तेणे, अयं उवचरए, अयं ततो आगए' त्ति कट्टु तं भिक्खुं अक्कोसेज्ज वा जाव उवद्दवेज्ज वा, वत्थं पडिग्गहं कंबलं पादपुंछणं अच्छिंदेज्ज वा भिंदेज्ज वा अवहरेज्ज वा परिट्ठवेज्ज वा । जह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जं तहप्पगाराणि विरूवरूवाणि पच्चंतियाणि जाव विहारवत्तियाए णो पवज्जेज्जा गमणाए । तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ।
१३४. विचरण करते हुए साधु-साध्वी को मार्ग में यदि विभिन्न देशों की सीमा पर रहने वाले दस्युओं (चोरों) के, म्लेच्छों के या अनार्यों के स्थान आते हों, जिन्हें बड़ी कठिनाई से समझाया जा सकता है, जिन्हें कठिनाई से धर्मबोध देकर अनार्य कर्मों से हटाया जा सकता है, ऐसे अकाल (कुसमय) में जागने वाले, कुसमय में खाने-पीने वाले मनुष्य रहते हो, तो अन्य मार्ग से विहार हो सकता हो अथवा अन्य आर्य क्षेत्र विद्यमान हों तो साधु उन म्लेच्छादि के स्थानों में विहार करने का मन में विचार न करे । केवली भगवान कहते हैं - वहाँ जाना कर्मबन्ध का कारण है।
(क्योंकि) वे अज्ञानी म्लेच्छ लोग साधु को देखकर - " यह चोर है, यह गुप्तचर है, यह हमारे शत्रु के गाँव से आया है" इत्यादि शब्द कहकर उस भिक्षु को कठोर वचन कहेंगे, रस्सों से बाँधेंगे, अनेक उपद्रव करेंगे और वे दुष्ट पुरुष उसके वस्त्र, पात्र, कम्बल, पाद-पोंछन आदि उपकरणों को तोड़-फोड़ देंगे, अपहरण कर लेंगे या उन्हें कहीं दूर फेंक देंगे ऐसा होना सम्भव है। इसीलिए भिक्षुओं के लिए तीर्थंकर आदि ज्ञानी पुरुषों ने पहले से ही उपदेश किया है कि भिक्षु उन दस्यु तथा अनार्य आदि लोगों के स्थानों में विहार करने
आचारांग सूत्र (भाग २)
( २३४ )
Acharanga Sutra (Part 2)
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