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इरिया : इयं अज्झयणं ईर्ष्या : तृतीय अध्ययन
IRYA : THIRD CHAPTER THE MOVEMENT
पढमो उद्देसओ
वर्षावास योग्य स्थान की एषणा
१२७. अब्भुवगए खलु वासावासे अभिपवुट्टे, बहवे पाणा अभिसंभूया, बहवे बीया अणुभिण्णा, अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहुबीया जाव ससंताणगा, अणभिक्कंता पंथा, णो विन्नाया मग्गा, सेवं नच्चा णो गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, तओ संजयामेव वासावासं उवल्लिएज्जा ।
प्रथम उद्देशक
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१२७. वर्षाकाल प्रारम्भ होने पर वर्षा हो जाने से बहुत-से प्राणी उत्पन्न हो जाते हैं, बहुत-से बीज अंकुरित हो जाते हैं, भूमि घास आदि से हरी हो जाती है। मार्ग में बहुत-से प्राणियों व बहुत-से बीजों की उत्पत्ति हो जाती है ( हरियाली हो जाती है, बहुत स्थानों में पानी भर जाता है, स्थान-स्थान पर पाँच वर्ण की लीलण - फूलण आदि हो जाती है, कीचड़ या पानी से मिट्टी गीली हो जाती है), कई जगह मकड़ी के जाले हो जाते हैं। वर्षा के कारण मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं, मार्ग पर चला नहीं जा सकता तथा मार्ग एवं उन्मार्ग का पता नहीं चलता। ऐसी स्थिति में साधु को एक ग्राम से दूसरे ग्राम विहार नहीं करना चाहिए किन्तु वर्षाकाल में एक स्थान पर ही स्थिर रहकर वर्षावास करना चाहिए ।
EXPLORATION OF PLACE SUITABLE FOR MONSOON-STAY
127. As it starts raining with the onset of monsoon season numerous beings are generated, seeds sprout, and the land turns green with grass and other vegetation. On the road too numerous beings are born and seeds sprout (the land turns green, water is collected at many places, fungus and moss of five colours are generated, sand turns to mire) and many places are covered with cobwebs. Paths are blocked due to rain, it becomes
आचारांग सूत्र (भाग २)
LESSON ONE
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Acharanga Sutra (Part 2)
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