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place to another within the premises or being brought out from the upashraya by a householder in order to prepare it for the stay of ascetics. If such upashraya has not already been used by the owner then it should not be used for ascetic activities including meditation. However, if it has already been used by the owner or a householder then it can be used after inspecting and cleaning by the ascetic for his ascetic activities including meditation. _ विवेचन-सूत्र ८१ से ८४ तक में साधुओं के निमित्त बने तथा अपुरुषान्तरकृत आदि चार प्रकार के उपाश्रय निषिद्ध बताये हैं
(१) साधु के लिए संस्कारित-सुसज्जित किया गया हो। (२) साधु के लिए उसकी तोड़-फोड़ तथा मरम्मत की जा रही हो। (३) साधु के लिए उसमें से कन्द-मूल आदि स्थानान्तर किये या निकाले जा रहे हों। (४) चौकी, पट्टे आदि सामग्री अन्यत्र ले जायी जा रही हो।
बृहत्कल्प भाष्य ५८३-५८४ में कहा है-इस प्रकार भवन को परिकर्मित-संस्कारित करने तथा उसकी मरम्मत कराने, उसमें पड़े हुए सचित्त-अचित्त सामान को स्थानान्तर करने, निकालने आदि में मूलगुण-उत्तरगुण विराधना की सम्भावना रहती है। प्रस्तुत आचारांग में इन्हीं चार प्रकार के उपाश्रयों के उपयोग का निषेध और विधान दोनों ही बताया है। यदि वे पुरुषान्तरकृत हों, साधु के लिए ही स्थापित न किए गये हों, दाता द्वारा उपयोग में लिए गये हों तो मुनि उनका स्वाध्याय आदि के लिए उपयोग कर सकता है। ___ पुरुषान्तरकृत आदि होने पर वे उपाश्रय साधु के लिए औद्देशिक, क्रीत या आरम्भकृत आदि दोषों से युक्त नहीं रहते। गृहस्थ जब किसी मकान को अपने लिए बनाता है या अपने किसी कार्य के लिए उस पर अपना अधिकार रखता है, अपने या समूह के प्रयोजन के लिए स्थापित करता है, स्वयं उसका उपयोग करता है, दूसरे लोगों को उपयोग करने के लिए देता है, तब वह मकान साधु के उद्देश्य से निर्मित-संस्कारित नहीं रहता, अन्यार्थकृत हो जाता है। दशवैकालिकसूत्र ८/५१ में साधु के लिए पर-कृत मकान में रहने का विधान है। (वृत्ति पत्र ३६१) __मूलगुण-दोष (आधाकर्मी) से दूषित मकान तो पुरुषान्तरकृत होने पर भी कल्पनीय नहीं होता, इसलिए अन्य विशेषण प्रयुक्त किए गये हैं-“नीहडे अत्तट्ठिए परिभुत्ते आसेविते।" ___Elaboration-In aphorisms 81 to 84 four types of upashrayas, including those constructed for ascetics and unused, have been censured
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आचारांग सूत्र (भाग २) NSESAMANDAsadioHAYADYAN
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