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stay there and also use for stay other such large and small gifted places, O long lived one ! They are guilty of transgression of the code of strictly prohibited places (Mahavarjya kriya).
१०४. इह खलु पाईणं वा ४ संतेगइया जाव तं सद्दहमाणेहिं जाव रोयमाणेहिं बहवे समणजायं समुद्दिस्स तत्थ तत्थ अगारीहि अगाराइं चेइयाइं भवंति, तं जहाआएसणाणि वा जाव गिहाणि वा, जे भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा जाव गिहाणि वा उवागच्छंति, २ इयराइयरेहिं पाहुडेहिं अयमाउसो ! सावज्जकिरिया यावि भवति।
१०४. इस संसार में कई श्रद्धालु व्यक्ति रहते हैं वे श्रमणों के प्रति श्रद्धा, प्रतीति और रुचि रखते हैं। सभी प्रकार के श्रमणों के उद्देश्य से लोहकारशाला यावत् भूमिगृह आदि बनवाते हैं। सभी श्रमणों के उद्देश्य से बनाये गये उन मकानों में जो निर्ग्रन्थ श्रमण आकर ठहरते हैं तथा गृहस्थों द्वारा उपहार रूप में प्रदत्त अन्यान्य गृहों का उपयोग करते हैं, वे सावध क्रिया के भागी होते हैं।
104. In this world there live many devout citizens who are not properly aware of the code of conduct of ascetics but still have faith, awareness and interest in them. They construct smithy and other said types of large buildings at different places for one specific type of Shramans. The Nirgranth ascetics who come and stay at dwellings made for all types of Shramans and also use for stay other such gifted places, O long lived one! They are guilty of transgression of the code of prohibition of places made for this purpose (Savadya kriya).
१०५. इह खलु पाईणं वा ४ जाव तं रोयमाणेहिं एगं समणजायं समुद्दिस्स तत्थ तत्थ अगारीहिं अगाराइं चेइयाइं भवंति, तं जहा-आएसणाणि वा जाव गिहाणि वा महया पुढविकायसमारंभेणं जाव महया तसकायसमारंभेणं महया संरंभेणं महया समारंभेणं महया आरंभेणं महया विरूवरूवेहिं पावकम्मकिच्चेहि, तं जहा-छावणओ लेवणओ संथार-दुवार-पिहणओ, सीओदगए वा परिद्ववियपुव्वे भवइ। अगणिकाए वा उज्जालियपुव्वे भवइ। जे भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा जाव गिहाणि वा उवागच्छंति इयराइयरेहिं पाहुडेहिं दुपक्खं ते कम्मं सेवंति, अयमाउसो ! महासावज्जकिरिया यावि भवइ। आचारांग सूत्र (भाग २)
( १९२ )
Acharanga Sutra (Part 2)
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