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सूत्र १०५ में आये 'दुपक्खं ते कम्मं सेवंति'-पद की वृत्तिकार ने इस प्रकार व्याख्या की है"द्रव्य से वे साधुवेशधारी हैं, किन्तु साधु जीवन में आधाकर्म-दोषयुक्त उपाश्रय-सेवन के कारण भाव से गृहस्थ हो चुके हैं। इस प्रकार द्रव्य से साधु के और भाव से गृहस्थ के कर्मों का सेवन करने के कारण वे 'द्विपक्षकर्म' का सेवन करते हैं।
संतेगतिया सड्ढा-कुछ एक श्रद्धालु होते हैं-वृत्तिकार ने इसका भद्र प्रकृति वाले श्रावक अर्थ किया है। किन्तु आचार्य श्री आत्माराम जी म. के कथनानुसार ऐसा श्रद्धालु भक्त जो साध्वाचार से परिचित नहीं है, किन्तु उनके प्रति श्रद्धाभाव रखता है, उनके लिए यहाँ ‘सड्ढा' शब्द प्रयुक्त हुआ है।
सूत्र १०९ में उल्लिखित स्थानों की सूची से यह भी पता चलता है कि उस युग में भिन्न-भिन्न प्रकार के उद्योगों के लिए उनके अनुकूल अलग-अलग स्थान बनाये जाते थे। सुसाण कम्मंताणि आदि पदों से यह भी सूचित होता है कि श्मशान, जंगल एवं गिरि-कन्दराओं में भी स्थान बने होते थे जिनमें वानप्रस्थ, संन्यासी आदि आकर निवास करते थे। ऐसे शान्त एकान्त स्थानों में निर्ग्रन्थ श्रमण भी आकर ठहर जाते थे।
॥ द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥
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Technical Terms : Udubaddhiyam (ritubaddha)-seasonal period or remaining period; this means eight months of an year other than the
monsoon period. Vasavasiyam (varshavas)-the four month monsoon period or monsoon-stay. Uvainitta-after spending. Apariharitta-not spending at other place. Ayesanani-workshops such as smithy and gold-smithy. Ayatanani-hostels or tenements made near temples. Paniyagihani-shops. Paniyasalao-warehouses. Kammantani, factories. Selovatthan-stone pavilion. Bhavanagihani--cellar or basement.
The commentator (Vritti) has defined the phrase 'dupakkham te kammam sevanti’ (105) as—Physically or in appearance they are ascetics but as they use an upashraya proscribed due to aadhakarmi fault (intentionally made for them), mentally they have become householders. Thus they live in contradictions (dupakkham kammam or dvipaksh karma) because physically they act as ascetics and mentally as a householder.
Q9
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शय्यैषणा : द्वितीय अध्ययन
( १९९ )
Shaiyyaishana : Second Chapter
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