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संस्तारक सम्बन्धी पाँच विकल्प
११९. (१) से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा संथारगं एसित्तए । से जं पुण संथारगं जाणेज्जा सअंडं जाव ससंताणगं, तहप्पगारं संथारगं लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।
(२) से भिक्खू वा २ से जं पुण संथारगं जाणेज्जा अप्पंडं जाव संताणगं गरुयं, तहप्पगारं संथारगं लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।
(३) से भिक्खू वा २ से जं पुण संथारगं जाणेज्जा अप्पंडं जाव संताणगं लहुयं अप्पsि हारियं तहप्पगारं संथारगं लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।
(४) से भिक्खू वा २ से जं पुण संथारगं जाणेज्जा अप्पंडं जाव संताणगं लहुयं पsिहारियं, णो अहाबद्धं, तहप्पगारं लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।
(५) से भिक्खू वा २ से जं पुण संथारगं जाणेज्जा अप्पडं जाव संताणगं लहुयं पडिहारियं अहाबद्धं, तहप्पगारं संथारगं जाव लाभे संते पडिगाहेज्जा ।
११९. (१) साधु या साध्वी संस्तारक या फलक आदि ग्रहण करना चाहें तो वह संस्तारक के सम्बन्ध में जाने कि यदि वह अण्डों से यावत् मकड़ी के जालों से युक्त है तो ऐसा संस्तारक मिलने पर भी ग्रहण नहीं करना चाहिए।
(२) साधु या साध्वी जाने कि संस्तारक अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से तो रहित है, किन्तु भारी है, वैसा संस्तारक भी मिलने पर ग्रहण नहीं करे।
(३) साधु या साध्वी जाने कि वह संस्तारक अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से रहित है, हलका भी है, किन्तु अप्रातिहारिक है, (दाता जिसे वापस लेना न चाहता हो ) तो ऐसा संस्तारक भी मिलने पर ग्रहण नहीं करे ।
(४) साधु या साध्वी जाने कि वह संस्तारक अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से रहित है, हल्का भी है, प्रातिहारिक (दाता जिसे वापस लेना स्वीकार करता है) किन्तु ठीक से बँधा हुआ नहीं है, तो ऐसा संस्तारक भी मिलने पर ग्रहण न करे ।
(५) साधु या साध्वी जाने कि वह संस्तारक अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से रहित है, हलका है, प्रातिहारिक है और सुदृढ़ बँधा हुआ भी है, तो ऐसा संस्तारक मिलने पर ग्रहण करे।
FIVE TYPES OF BED
119. (1) When a bhikshu or bhikshuni wants to have a bed or plank (etc.), he should find if that bed is infested with eggs and
शय्यैषणा: द्वितीय अध्ययन
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Shaiyyaishana: Second Chapter
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