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proper for a wise ascetic to enter and leave that house. Such house is unsuitable for his discourse (etc.) as well.
११७. इह खलु गाहावइ वा जाव कम्मकरीओ वा णिगिणा ठिया णिगिणा उवल्लीणा मेहुणधम्मं विण्णवेंति रहस्सियं वा मंतं मंतेति, णो पण्णस्स जाव णो ठाणं वा ३ चेइज्जा ।
११७. साधु या साध्वी ऐसा उपाश्रय जाने, जिसमें गृह-स्वामिनी, यावत् नौकरानियाँ आदि नग्न खड़ी रहती हों या नग्न बैठी रहती हों और नग्न होकर गुप्त रूप से मैथुन सम्बन्धी परस्पर वार्तालाप करती हों अथवा किसी रहस्यमय अकार्य के सम्बन्ध में गुप्त मंत्रणा करती हों, तो वहाँ प्राज्ञ साधु को आवागमन तथा वाचनादि स्वाध्याय नहीं करना चाहिए।
117. A bhikshu or bhikshuni should find if in the available upashraya its owner's wife, maids etc. (habitually) stand or sit naked and furtively discuss erotic topics or some secret conspiracy. If it is so, it is not proper for a wise ascetic to enter and leave that house. Such house is unsuitable for his discourse (etc.) as well.
११८. से भिक्खू वा २ से जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा आइण्णं सलेक्खं, णो पण्णस्स जाव णो ठाणं वा २ चेइज्जा।
११८. साधु-साध्वी यदि ऐसा उपाश्रय जाने, जो स्त्री-पुरुषों आदि के चित्रों से सुसज्जित (आकीर्ण) है, तो ऐसे उपाश्रय में प्राज्ञ साधु को आवागमन, कायोत्सर्गादि तथा पंचविध स्वाध्याय नहीं करना चाहिए।
118. A bhikshu or bhikshuni should find if the available upashraya is decorated with paintings on various themes including male and female figure. If it is so, it is not proper for a wise ascetic to enter and leave that house. Such house is unsuitable for his discourse (etc.) as well.
विवेचन-इन आठ सूत्रों में निम्नलिखित आठ प्रकार के उपाश्रयों में ठहरने का निषेध किया गया है
(१) जो उपाश्रय, गृहस्थ, अग्नि और जल से युक्त हो।
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'शय्यैषणा : द्वितीय अध्ययन
( २११ )
Shaiyyaishana : Second Chapter
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