________________
१२५. से भिक्खू वा २ ऊससमाणे वा णीससमाणे वा कासमाणे वा छीयमाणे वा जंभायमाणे वा उड्डोए वा वातणिसग्गे वा करेमाणे पुवामेव आसयं वा पोसयं वा पाणिणा परिपिहेत्ता ततो संजयामेव ऊससेज्ज वा जाव वायणिसग्गं वा करेज्जा।
१२५. साधु या साध्वी (शय्या-संस्तारक पर सोते-बैठते समय) उच्छ्वास या निःश्वास लेते हुए, खाँसते हुए, छींकते हुए या उबासी लेते हुए, डकार लेते हुए अथवा अपानवायु छोड़ते हुए पहले ही मुँह या गुदा स्थान को हाथ से अच्छी तरह ढाँककर यतना से उच्छ्वास आदि ले यावत् पानवायु छोड़े।
125. A bhikshu or bhikshuni (while sleeping or sitting in bed) should properly cover mouth or anus with hands before breathing, coughing, sneezing, yawning, belching or breaking wind and then only attend to such demand of the body. _ विवेचन-इन सूत्रों में बड़ों की अशातना टालने, हिंसा से बचने तथा व्यावहारिक सभ्यता का ध्यान रखने की सूचना दी है
(१) सूत्र में बताये अनुसार आचार्यादि विशिष्ट ११ श्रेणीगत साधुओं के लिए शय्या-संस्तारक भूमि छोड़कर शेष बचे हुए स्थान पर शय्या-संस्तारक बिछाए।
(२) शय्या-संस्तारक पर जाते समय भी सिर से पैर तक प्रमार्जना करे। (३) यातनापूर्वक शय्या-संस्तारक पर सोए।
(४) शयन करते हुए अपने हाथ, पैर और शरीर दूसरे के हाथ, पैर और शरीर से आपस में टकराएँ नहीं। वृत्तिकार का कथन है-एक साधु को दूसरे साधु से एक हाथ दूर सोना चाहिए। (वृत्ति पत्रांक ३७३)
(५) शय्या पर उठते, बैठते या सोते समय श्वासोच्छ्वास, खाँसी, छींक, उबासी, डकार, अपानवायु आदि करने से पूर्व हाथ से उस स्थान को ढककर रखे।
Elaboration—In these aphorisms directions have been given to avoid disrespect to elders and any type of violence as well as to stick to social etiquette
(1) As indicated in the aphorism ascetics should leave enough area for the senior ascetics including the acharya. He should spread his bed in the remaining area only. __ (2) He should clean his body before entering bed. शय्यैषणा : द्वितीय अध्ययन
( २२३ ) Shaiyyaishana : Second Chapter
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org