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क्योंकि वहाँ पर शाक्य आदि श्रमणों के या ब्राह्मणों के जो छत्र, पात्र, दण्ड, लाटी, योग आसन, नालिका (एक प्रकार की लम्बी लाठी या घटिका), वस्त्र, चिलमिली (पर्दा या मच्छरदानी), मृगचर्म, चर्मकोश (चमड़े की थैली) या चर्म-छेदनक (चमड़े का पट्टा) है, वे अच्छी तरह से बँधे हुए या रखे हुए नहीं हैं, अस्थिर (हिलने वाले) हैं, कुछ अधिक चंचल हैं, उनको आघात पहुँचने की संभावना रहती है। रात्रि में या विकाल में अन्दर से बाहर
या बाहर से अन्दर निकलता या प्रवेश करता हुआ साधु यदि फिसल पड़े या गिर पड़े (तो उनके उपकरण टूट जायेंगे) अथवा उस साधु को फिसलने या गिर पड़ने से उसके हाथ, पैर, सिर या अन्य इन्द्रियों के चोट लग सकती है या वे टूट सकते हैं, अथवा प्राणियों को आघात लगेगा, वे दब जायेंगे यावत् उनका विनाश भी हो सकता है।
इसलिए तीर्थंकरों ने साधुओं के लिए यह उपदेश दिया है कि इस प्रकार के उपाश्रय में रात को या विकाल में पहले हाथ से टटोलकर फिर पैर रखना चाहिए तथा यतनापूर्वक भीतर से बाहर या बाहर से भीतर गमनागमन करना चाहिए। HOW TO BE PRUDENT ABOUT ACCEPTING AN UPASHRAYA
108. If a bhikshu or bhikshuni gets an upashraya that is small or has small entrance or is low or its gate remains closed and is occupied by charak and other parivrajaks, and the ascetic has to stay there for some reason then while going out or entering that dwelling, during the night or some other odd hour, he should first explore with his hands (or ascetic-broom) and then only put his foot forward. The omniscient says—otherwise) it causes bondage of karmas.
This is because there are chances of causing damage to a variety of equipment belonging to Shakya and other Shramans or Brahmins, lying there in unpacked, disorderly, loose and unstable condition. The equipment being-umbrella, pot, stick, staff, mattress, pipe (used as staff), robe, curtain or mosquito-net, hide, leather bag or leather belt. During the night or other odd hour, while entering or going out if an ascetic slips and falls he may damage these things or damage or break his own limbs or other parts of the body or harm, crush or kill other creatures.
Therefore for ascetics the Tirthankars have advised that while going out or entering such dwelling, during the night or शय्यैषणा : द्वितीय अध्ययन
( २०५ ) Shaiyyaishana : Second Chapter
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