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beggars in their villages or towns. For example--smithy; hostels adjacent to temples; assembly halls; water-huts; shops; warehouses; . garages; chariot-workshops; lime-factories; processing houses for grass, leather and bark; coal-factory; carpentry; dwellings on cremation ground, hills, caves; resthouses; stone-houses and cellars. If such smithy and other said dwellings have already been used for stay by Buddhists, Brahmins etc. and then Nirgranth ascetics come and stay, O long lived one ! That place is said to be already used' (Abhikranta kriya). This means it is proper for an ascetic to stay there.
१०१. इह खलु पाईणं वा जाव ४ तं रोयमाणेहिं बहवे समण-माहण-अतिहिकिवण-वणीमए समुद्दिस्स तत्थ तत्थ अगारीहिं अगाराइं चेइयाइं भवंति, तं जहाआएसणाणि वा जाव गिहाणि वा, जे भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा तेहिं अणोवयमाणेहिं उवयंति-अयमाउसो ! अणभिक्कंतकिरिया या वि भवति।
१०१. आयुष्मन् ! इस संसार में पूर्वादि दिशाओं में अनेक ऐसे श्रद्धालु होते हैं, जिन्हें निर्ग्रन्थ साधुओं के आचार-विचार का ज्ञान नहीं होता, किन्तु (दान का फल स्वर्गादि की प्राप्ति होती है, इस प्रकार की) श्रद्धा, प्रतीति और अभिरुचि से प्रेरित होकर बहुत-से श्रमण, ब्राह्मण आदि को उद्देश्य करके विशाल मकान बनवाते हैं, जैसे कि लोहकारशाला - यावत् भूमिगृह आदि। ऐसी लोहकारशाला यावत् भूमिगृह आदि स्थानों को गृहस्थों ने तथा परिव्राजक, शाक्यादि श्रमण आदि ने अपने काम में नहीं लिए हैं, (अर्थात् बनने के बाद से अब तक खाली पड़े रहे हैं), तो ऐसे मकानों में अगर निर्ग्रन्थ श्रमण आकर पहले-पहल ठहरते हैं, उन्हें अनभिक्रान्त क्रिया लगती है (वह स्थान अकल्पनीय है)। ___101. In this world there live many devout citizens, their families and servants in the east, west, south and north. Although they have not heard about the proper code of conduct of Nirgranth ascetics, however (they have heard that giving a place of stay for sages and monks in charity begets fruits like passage to heaven). Having faith, awareness and interest in this statement these householders have constructed large buildings for the use of Buddhists, Shramans, Brahmins, destitute and शय्यैषणा : द्वितीय अध्ययन
( १८९ ) Shaiyyaishana : Second Chapter
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