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या जड़ता ) हो जाये अथवा सूजन आ जाये, विशूचिका (अतिसार) या वमन रोग हो जाये अथवा अन्य कोई, शूल, पीड़ा, दुःख या रोगातंक पैदा हो जाये, तब वह गृहस्थ करुणाभाव से प्रेरित होकर उस भिक्षु के शरीर पर तेल, घी, नवनीत अथवा वसा से मालिश करेगा या चुपड़ेगा । फिर उसे प्रासुक शीतल जल या उष्ण जल से स्नान करायेगा अथवा सुगंधित द्रव्य, लोध, वर्णक, चूर्ण या पद्म से एक बार घिसेगा, बार-बार घिसेगा, शरीर पर लेप करेगा अथवा शरीर का मैल दूर करने के लिए उबटन करेगा। प्रासुक शीतल जल से या उष्ण जल से एक बार धोएगा या बार-बार धोएगा, मल-मलकर धोएगा अथवा मस्तक पर पानी छींटेगा, अरणी की लकड़ी को परस्पर रगड़कर अग्नि उज्ज्वलित-प्रज्वलित करेगा। अग्नि को सुलगाकर और अधिक प्रज्वलित करके साधु के शरीर को थोड़ा अधिक तपायेगा ।
इस तरह गृहस्थ कुटुम्ब के साथ एक घर में रहने से अनेक दोष लगने की संभावना देखकर तीर्थंकर भगवान ने भिक्षु के लिए पहले से ही ऐसा नियम बताया है, ऐसे मकान में नहीं ठहरना चाहिए और कायोत्सर्ग आदि भी नहीं करना चाहिए ।
CENSURE OF LIVING IN INHABITED UPASHRAYA
86. A bhikshu or bhikshuni should not stay in an upashraya that is crowded with women, children, animals and small creatures or with food and other things meant for householders or animals.
87. Living in the same house with householder families is a source of faults for an ascetic. While living there an ascetic may suffer from paralysis of limbs or swollen limbs, diarrhea, vomiting or other ache, pain or ailment. In such condition, inspired by compassion, the householder will apply or rub oil, butter, cream or fat on the body of the ascetic. After this he will give a bath with pure and cold or hot water; rub and anoint the body, once or repeatedly, with aromatic pastes, herbs, pigments, powder or lotus; or remove the dirt of the body by rubbing with a paste. He will wash (the effected part) with pure and cold or hot water once or many times, lightly or vigorously. He will rub dry timber to produce fire and add fuel to it to give warmth to or foment the body of the ascetic.
शय्यैषणा : द्वितीय अध्ययन
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Shaiyyaishana: Second Chapter
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