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conform to the attitude of an ascetic following the ahimsa way of life. Thus it is evident that these words were used for some vegetables during the time of writing of this work. (Hindi Tika, p. 901)
दूसरों के निमित्त का आहार
६७. से भिक्खू वा २ से जं पुण जाणेज्जा असणं वा ४ परं समुद्दिस्स बहिया णीहडं जं परेहिं असमणुन्नायं अणिसिटुं अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा।
जं परेहिं समणुण्णायं समणुसिटुं फासुयं जाव लाभे संते पडिगाहेज्जा। एवं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्षुणीए वा सामग्गियं।
॥णवमो उद्देसओ सम्मत्तो ॥
६७. साधु या साध्वी गृहस्थ के घर में आहार के लिए जाने पर यदि यह जाने कि दूसरों के निमित्त से बनाया गया अशनादि चतुर्विध आहार देने के लिए घर से निकाला गया है, परन्तु अभी तक गृहपति ने उस आहार को ले जाने की उन्हें अनुमति नहीं दी है
और न ही उन्होंने उस आहार को ले जाने या देने के लिए उनके स्वाधीन किया है, ऐसी परिस्थिति में यदि कोई वह आहार साधु को लेने की विनती करे तो उसे अप्रासुक एवं
अनेषणीय जानकर स्वीकार न करे। __यदि गृहस्वामी आदि ने उन लोगों को उक्त आहार ले जाने की भलीभाँति अनुमति दे दी है तथा उन्होंने वह आहार अच्छी तरह से उनके स्वाधीन कर दिया है और कह दिया है-तुम जिसे चाहो दे सकते हो, (ऐसी स्थिति में वह) साधु को लेने के लिए विनती करे तो उस आहार को प्रासुक और एषणीय जानकर ग्रहण कर लेवें। यह उस भिक्षु या भिक्षुणी की (ज्ञान, दर्शनादि की) समग्रता है।
॥ नवम उद्देशक समाप्त ॥
FOOD MEANT FOR OTHERS
67. A bhikshu or bhikshuni while entering the house of a layman in order to seek alms should find if the food prepared for others has been brought out from the house but the host has not yet given permission to them to take it away, neither has he handed over the food to them to take away or distribute. If it is
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पिण्डैषणा : प्रथम अध्ययन
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Pindesana : Frist Chapter
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