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दसमो उद्देसओ
दसम उद्देशक
आहार-वितरण विवेक
६८. से एगइओ साहारणं वा पिंडवायं पडिगाहित्ता ते साहम्मिए अणापुच्छित्ता जस्स जस्स इच्छइ तस्स तस्स खद्धं खद्धं दलइ । माइट्ठाणं संफासे । णो एवं करेज्जा ।
LESSON TEN
से तमायाए तत्थ गच्छिज्जा, गच्छित्ता पुव्वामेव एवं वइज्जा आउसंतो समणा ! संति मम पुरेसंथुया वा पच्छासंथुया वा, तं जहा - ( १ ) आयरिए वा (२) उवज्झाए वा (३) पवत्ती वा (४) थेरे वा (५) गणी वा (६) गणहरे वा (७) गणावच्छेइए वा, अवियाइं एएसिं खद्धं खद्धं दाहामि । से णेवं वयंतं परो वइज्जा - कामं खलु आउसो ! अहापज्जत्तं निसिराहि । जावइयं २ परो वयइ तावइयं २ णिसिरेज्जा। सव्वमेयं परो वयइ सव्वमेयं णिसिरेज्जा ।
६८. यदि कोई भिक्षु गृहस्थ के घर से बहुत-से साधुओं के लिए साधारण अर्थात् सम्मिलित आहार लेकर स्थान पर आता है और उन अपने साधर्मिक साधुओं से पूछे बिना ही जिसे-जिसे इच्छा होती है, उसे उसे बहुत-बहुत दे देता है; तो ऐसा करने से वह मायास्थान -कपट का सेवन करता है । साधु को ऐसा नहीं करना चाहिए ।
किन्तु आहार प्राप्त होने पर उस प्राप्त आहार को लेकर गुरुजनादि के पास जाना चाहिए और पहले इस प्रकार कहे - " आयुष्मन् श्रमणो ! यहाँ कुछ मेरे पूर्व-परिचित (जिनसे दीक्षा अंगीकार की है) तथा कुछ पश्चात् परिचित ( जिनसे श्रुताभ्यास किया है) हैं, जैसे कि - ( १ ) आचार्य, (२) उपाध्याय, (३) प्रवर्त्तक, (४) स्थविर, (५) गणी, (६) गणधर ( गच्छ प्रमुख ), और (७) गणावच्छेदक आदि उपस्थित हैं; अगर आपकी आज्ञा हो तो इन उपस्थित श्रमणों को आहार दे दूँ ।" उस भिक्षु के ऐसा कहने पर यदि गुरुजनादि कहें - " आयुष्मन् श्रमण ! इच्छानुसार उन्हें यथा पर्याप्त आहार दे दो।” तो आचार्य की आज्ञानुसार वह साधु सबको जितना-जितना वे कहें, उतना उतना आहार उन्हें दे दें। यदि वे कहें कि "सारा आहार दे दो”, तो सारा का सारा दे दें।
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PRUDENCE OF FOOD DISTRIBUTION
68. A bhikshu or bhikshuni collects food jointly for many ascetics from the house of a layman and brings it to his place of stay. Then if he distributes among his co-religionist ascetics
पिण्डैषणा : प्रथम अध्ययन
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Pindesana: Frist Chapter
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