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(४) अहावरा चउत्था पिंडेसणा-से भिक्खू वा २ से जं पुण जाणेज्जा पिहुयं वा जाव चाउलपलंबं वा, अस्सिं खलु पडिग्गहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे अप्पे पज्जवजाए। तहप्पगारं पिहुयं वा जाव चाउलपलंबं वा सयं वा णं जाएज्जा जाव पडिगाहेज्जा। चउत्था पिंडेसणा।
(४) चौथी पिण्डैषणा इस प्रकार है-भिक्षु यह जाने कि गृहस्थ के यहाँ तुषरहित चावल आदि अन्न रखा है, यावत् भुंजे हुए शालि आदि चावल हैं, जिन्हें लेने पर पश्चात्-कर्म दोष नहीं लगेगा और न ही तुष आदि गिराने पड़ते हैं, इस प्रकार के धान्य यावत् भुग्न शालि आदि चावल या तो साधु स्वयं माँग ले या फिर गृहस्थ बिना माँगे ही उसे दे तो प्रासुक एवं एषणीय समझकर प्राप्त होने पर ले लेना चाहिए। यह चौथी पिण्डैषणा है।
(५) अहावरा पंचमा पिंडेसणा-से भिक्खू वा २ जाव उग्गहियमेव भोयणजायं जाणेज्जा, तं जहा-सरावंसि वा डिंडिमंसि वा कोसगंसि वा। अह पुणेवं जाणेज्जा बहुपरियावण्णे पाणीसु दगलेवे। तहप्पगारं असणं वा ४ सयं वा णं जाएज्जा जाव पडिगाहेज्जा। पंचमा पिंडेसणा।
(५) पाँचवीं पिण्डैषणा इस प्रकार है-भिक्षु यह जाने कि गृहस्थ ने सचित्त जल से हाथ धोकर अपने खाने के लिए किसी सकोरे में, काँसे के बर्तन में या मिट्टी के किसी बर्तन में भोजन रखा है, उसके हाथ और पात्र जो सचित्त जल से धोए थे, अब कच्चे पानी से लिप्त नहीं हैं (सूख चुके हैं)। उस प्रकार के आहार को प्रासुक जानकर या तो साधु स्वयं माँग ले या गृहस्थ स्वयं देने लगे तो वह ग्रहण कर ले। यह पाँचवीं पिण्डैषणा है।
(६) अहावरा छट्ठा पिंडेसणा-से भिक्खू वा २ पग्गहियमेव भोयणजायं जाणेज्जा जं च सयट्ठाए पग्गहियं जं च परट्ठाए पग्गहियं तं पायपरियावण्णं तं पाणिपरियावण्णं फासुयं जाव पडिगाहेज्जा छट्ठा पिंडेसणा।
(६) छठी पिण्डैषणा इस प्रकार है-भिक्षु यह जाने कि गृहस्थ ने अपने लिए या दूसरे के लिए बर्तन में से भोजन निकाला है, परन्तु दूसरे ने अभी तक उस आहार को ग्रहण नहीं किया है, तो उस प्रकार का भोजन चाहे गृहस्थ के पात्र में हो या उसके हाथ में हो, उसे प्रासुक और एषणीय जानकर मिलने पर ग्रहण कर लेना चाहिए। यह छठी पिण्डैषणा है।
(७) अहावरा सत्तमा पिंडेसणा-से भिक्खू वा २ जाव बहुउज्झियधम्मियं भोयणजायं जाणेज्जा जं चऽन्ने बहवे दुपय-चउप्पय, समण-माहण-अतिहि-किवणवणीमगा णावकंखंति तहप्पगारं उज्झियधम्मियं भोयणजायं सयं वा णं जाएज्जा परो वा से देज्जा जाव पडिगाहिज्जा। सत्तमा पिंडसणा। इच्चेयाओ सत्त पिंडेसणाओ। आचारांग सूत्र (भाग २)
( १५२ )
Acharanga Sutra (Part 2)
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सार
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