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५९. आहार के निमित्त गृहस्थ के घर में प्रविष्ट हुए साधु या साध्वी यह जाने कि वहाँ शाली धान आदि अन्न के कण हैं, कणों से मिश्रित छाणक (चोकर) है, कणों से मिश्रित कच्ची रोटी चावल, चावलों का आटा, तिल, तिलकूट, तिलपपड़ी (तिलपट्टी) है अथवा अन्य उसी प्रकार का पदार्थ है जोकि कच्चा और अशस्त्र-परिणत है, तो उसे अप्रासुक और अनेषणीय जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे।
यह (वानस्पतिकायिक आहार-गवेषणा) उस भिक्षु या भिक्षुणी की (ज्ञान, दर्शन, चारित्रादि से सम्बन्धित) समग्रता है।
59. A bhikshu or bhikshuni on entering the house of a layman in order to seek alms should find if he is offered seed-grains, grain-mixed bran, bread made with grain-mixed flour, rice, riceflour, sesame, ground sesame, cakes of sesame or other such things that are raw and unmodified. If it is so, he should refrain from taking any such things considering them to be contaminated and unacceptable. ___ This (exploration of vegetarian food) is the totality (of conduct including that related to knowledge) for that bhikshu or bhikshuni.
विवेचन-सूत्र ४५ से ५९ तक-मुनि के भिक्षा सम्बन्धी इन सूत्रों में अहिंसा की दृष्टि से मुख्य रूप में विचार किया गया है। आहार का मुख्य स्रोत वनस्पति ही है। शास्त्र में वनस्पति के दस भेद बताये हैं
मूले कंदे खंधे तया य साले तहप्पवाले य।
पत्ते पुफ्फे य फले बीये दसमे य नायव्वा ॥ -जिनदास चूर्णि दशवैकालिक, पृ. १३८ (१) मूल, (२) कन्द, (३) स्कन्ध, (४) त्वचा, (५) शाखा, (६) प्रवाल, (७) पत्र, (८) पुष्प, (९) फल, और (१०) बीज।
इनमें जो आहारोपयोगी भाग है, उसकी एषणीयता पर अहिंसा की दृष्टि से विचार किया गया है
(१) अपक्क-कच्चा इसके लिए 'आम' शब्द का भी प्रयोग हुआ है।
(२) अर्ध-पक्क-आधा पका। आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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