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| नवमो उद्देसओ
नवम् उद्देशक
LESSON NINE
आधाकर्मिक आहार आदि ग्रहण-निषेध
६०. इह खलु पाईणं वा पडीणं वा दाहिणं वा उदीणं वा संतेगइया सड्ढा भवंति गाहावइ वा जाव कम्मकरी वा। तेसिं च णं एवं वुत्तपुव्वं भवइ-जे इमे भवंति समणा भगवंतो सीलमंता वयमंता गुणमंता संजया संवुडा बंभचारी उवरया मेहुणाओ धम्माओ णो खलु एयंसि कप्पइ आहाकम्मिए असणे वा पाणे वा खाइमे वा साइमे वा भोत्तए वा पायए वा। से जं पुण इमं अम्हं अप्पणो अट्ठाए णिट्ठियं, तं जहा-असणं वा ४, सव्वमेयं समणाणं णिसिरामो, अवियाइं वयं पच्छा वि अप्पणो सयट्ठाए असणं वा ४ चेइस्सामो। एयप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म तहप्पगारं असणं वा ४ अफासुयं अणेसणिज्जं जाव लाभे संते णो पडिगाहेज्जा।
६०. यहाँ (संसार में) पूर्व में, पश्चिम में, दक्षिण में या उत्तर दिशा में कई सद्गृहस्थ तथा उनके परिवार आदि उनकी नौकर-नौकरानियाँ रहते हैं, वे बहुत श्रद्धावान् होते हैं
और परस्पर मिलने पर इस प्रकार बातें करते हैं-"ये पूज्य श्रमण भगवान शीलवान, * व्रतनिष्ठ, गुणवान, संयमी, आस्रवों का निरोध करने वाले ब्रह्मचारी एवं मैथुन-कर्म से
सर्वथा निवृत हैं। इनको आधाकर्मिक अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य, लेना, खाना तथा पीना नहीं कल्पता है। अतः हमने अपने लिए अशनादि जो आहार बनाया है, वह सब हम इन श्रमणों को दे देंगे और हम अपने लिए बाद में अन्य अशन-पानादि आहार बना लेंगे।" उनके इस प्रकार के वार्तालाप को सुनकर अथवा (दूसरों से) जानकर, साधु या साध्वी इस प्रकार के अशनादि चतुर्विध आहार को अप्रासुक और अनेषणीय समझकर मिलने पर भी ग्रहण न करे।
CENSURE OF ADHAKARMIK FOOD
60. In this world there live many good citizens, their families and servants in east, west, south and north. They are devout and when they come together they converse like this-“These revered Shramans are righteous, pious, virtuous, disciplined, hermetic (with respect to inflow of karmas), completely restrained and absolutely celibate. They can neither take, eat nor drink any Aadhakarmik (food specifically prepared for them) food (staple पिण्डैषणा : प्रथम अध्ययन
( ११५ )
Pindesana : Frist Chapter
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