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such food placed on plant-bodied beings, considering it to be faulty and unacceptable.
In the same way, he should also refrain from taking any food placed on mobile-bodied beings, considering it to be faulty and unacceptable.
विवेचन - कई बार ऐसा होता है कि आहार अचित्त और प्रासुक होता है, किन्तु उस आहार पर या आहार के बर्तन के नीचे या आहार के अन्दर कच्चा पानी, सचित्त नमक आदि हरी वनस्पति या बीज आदि स्थित हो, अग्नि का स्पर्श हो, आग से बार-बार वर्तन को उतारा - रखा जा रहा हो या फूँक मारकर अथवा पंखे आदि से हवा की जा रही हो अथवा उस आहार से स जीवों की विराधना होती हो। उस आहार को सचित्त प्रतिष्ठित माना जाता है, साधु के लिए वह ग्राह्य नहीं होता । दशवैकालिकसूत्र ५/१/५७-६८ में भी इसी प्रकार का वर्णन है ।
Elaboration-Many a time it so happens that although the food is achit (uncontaminated) and without any fault, but there is some plane water, sachit salt, green vegetable, seeds etc. are placed on, under or within the pot containing that food. Also the pot is in contact with fire or repeatedly lifted from and placed on fire or air blown on it or it is causing harm to mobile beings. Such food is considered as being placed on sachit things and is not acceptable to an ascetic. Dashavaikalika Sutra 5/1/57-68 also has similar mention.
अनेषणीय पानक-निषेध
४१. (१) से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण पाणगजायं जाणेज्जा, तं जहा - (क) उस्सेइमं वा (ख) संसेइमं वा (ग) चाउलोदगं वा (घ) अण्णयरं वा तहप्पगारं पाणगजायं अहुणाधोयं अणंबिलं अव्युक्वंतं अपरिणयं अविद्धत्थं अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा ।
(२) अह पुण एवं जाणेज्जा - चिराधोयं अंबिलं वुक्कतं परिणयं विद्वत्थं फासूयं जाव पडिगाहेज्जा ।
४१. (१) साधु या साध्वी गृहस्थ के घर में पानी ग्रहण करने के लिए प्रवेश करने पर पानी के इन भेदों को जाने - जैसे कि - (क) आटे का हाथ लगा हुआ पानी, (ख) तिल आदि का धोया हुआ पानी, (ग) चावल धोया हुआ पानी, (घ) अथवा शाकभाजी का उबला हुआ पानी अथवा अन्य किसी वस्तु का इसी प्रकार का तत्काल धोया हुआ पानी हो, जिसका स्वाद
पिण्डैषणा: प्रथम अध्ययन
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Pindesana: Frist Chapter
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