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सत्तमो उद्देसओ
सप्तम उद्देशक
LESSON SEVEN
-14
मालापहृत दोषयुक्त आहार-ग्रहण निषेध
३७. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण जाणेज्जा-असणं वा ४ खंधंसि वा थंभंसि वा मंचंसि वा मालंसि वा पासायंसि वा हम्मियतलंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतलिक्खजायंसि उवनिक्खित्ते सिया। तहप्पगारं मालोहडं असणं वा ४ अफासुयं णो पडिगाहेज्जा। केवली बूया-आयाणमेयं। ___ अस्संजए भिक्खुपडियाए पीढं वा फलगं वा णिस्सेणिं वा उदूहलं वा अवहट्ट उस्सविय दुरुहिज्जा। से तत्थ दुरुहमाणे पयलेज्ज वा पवडेज्ज वा। से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा हत्थं वा पायं वा बाहुं वा उरुं वा उदरं वा सीसं वा अण्णयरं वा कायंसि इंदियजालं लूसेज्ज वा, पाणाणि वा ४ अभिहणेज्ज वा, वित्तासिज्ज वा, लेसेज्ज वा, संघेज्ज वा, संघट्टेज्ज वा, परियावेज्ज वा, किलामेज्ज वा, ठाणाओ ठाणं संकामेज्ज वा। तं तहप्पगारं मालोहडं असणं वा ४ लाभे संते णो पडिगाहेज्जा।
३७. साधु या साध्वी गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए जाने पर, यदि अशनादि चतुर्विध आहार गृहस्थ के यहाँ भीत पर, स्तम्भ पर, मंच पर, घर के अन्य ऊपरी भाग (आले) पर, महल पर, प्रासाद आदि की छत पर या अन्य उसी प्रकार के किसी ऊँचे (अंतराल) स्थान पर रखा हुआ है, तो इस प्रकार के ऊँचे स्थान से उतारकर दिया जाता अशनादि चतुर्विध आहार अप्रासुक एवं अनेषणीय जानकर साधु ग्रहण न करे। केवली भगवान कहते हैं-यह कर्मबंध का कारण है। ___ गृहस्थ भिक्षु को आहार देने के लिए (ऊँचे स्थान पर रखे हुए आहार को उतारने के लिए) चौकी, पट्टा, सीढ़ी या ऊखल आदि को लाकर ऊँचा करके उस पर चढ़ेगा। ऊपर चढ़ता हुआ वह गृहस्थ फिसल सकता है या गिर सकता है। वहाँ से फिसलते या गिरते हुए उसका हाथ, पैर, भुजा, छाती, पेट, सिर या शरीर का कोई भी अवयव टूट सकता है अथवा उसके गिरने से प्राणी, भूत, जीव और सत्त्व का हनन हो सकता है, वे जीव नीचे । (धूल में) दब सकते हैं, परस्पर चिपककर कुचल सकते हैं, परस्पर टकरा सकते हैं, उन्हें पीड़ाजनक स्पर्श हो सकता है, उन्हें संताप हो सकता है, वे हैरान हो सकते हैं, वे त्रस्त हो सकते हैं या एक (अपने) स्थान से दूसरे स्थान पर उनका संक्रमण हो सकता है अथवा वे जीव से भी रहित हो सकते हैं। अतः इस प्रकार के मालापहृत (ऊँचे स्थान से उतारकर लाये गए) अशनादि चतुर्विध आहार के प्राप्त होने पर भी साधु उसे ग्रहण न करे। पिण्डैषणा : प्रथम अध्ययन
( ८७ )
Pindesana : Frist Chapter
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