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जाजक्स के अनुसार नै नियों का प्रसिद्ध तीर्थ पालिताना है' । जहाँ हजरत ईसा मसीह ने तपस्या की थी और जैन शिक्षा ग्रहण की थी उसी पालिताना के नाम पर पलिस्टाइन बस गया था । बहुत दिनों तक जैन साधुओं की संगति में रह कर वह फिर नैपाल और हिमालय होते हुए ईरान चले गये और वहां से अपने देश में जाकर उन्होंने अहिंसा और विश्व प्रेम का प्रचार चालू कर दिया । उन्होंने जिन तीन विशेष सिद्धान्तों (१) आत्मा और परमात्मा की एकता (२) आत्मा का अमरत्व (३) आत्मा के दिव्य स्वरूप का उपदेश दिया था, ये यहूदी संस्कृति से संबन्ध नहीं रखते, बल्कि जैन संस्कृति के मूलाधार हैं । ___“जिसने दया नहीं की, कयामत के दिन उस पर भी दया नहीं होगी । नो दूसरों के गले पर छुरियाँ चलाते हैं, उन को अधिकार नहीं कि पाक अञ्जील को अपने नापाक हाथों में लें धिक्कार है उन पर जो खुदा के नाम पर कुर्वानी करते हैं । तू किसी का खून मत कर । यदि जीव की हत्या करने के कारण तुम्हारे हाथ खून से भरे हुये हैं तो मैं तुम्हारी तरफ से अपनी आँखें बन्द कर लूगा और प्रार्थना करने पर भी ध्यान न दंगा।" ये शिक्षायें जैन धर्म के सिद्धान्तों से मिलती-जुलती हैं।
१ से ४. Anekant. Vol. VII. P. 173. ५. St. John. 11. 13.
. Mr. F. H. Begrie. ६ से ७. मिति की अम्जील अ० १ आयत ११-१५ । ८. "Thou shalt nor kill.' Christ's Frst Ordinance.
And wbien ye spread forth your hands. I will hide my eyes from you. Yes, when ye make many prayers I will not hear. if your hands are full of blood."
-Hosia. 8. 16.
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