Book Title: Vardhaman Mahavir
Author(s): Digambardas Jain
Publisher: Digambardas Jain

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Page 522
________________ १८०६ ई० में यह पुस्तक मैसूर के एकिंग रेजीडेण्ट Major Welke को मिली, जिन्होंने इसको बहुत प्रशंसा के साथ मद्रास के गवर्नर के पास भेजी । उक्त महोदय ने दो हजार पैगोडा ( दक्षिण की एक मुद्रा का नाम है ) में इसको खरीद कर २४ दिसम्बर १८०७ को इसे प्रकाशित करने के लिये East India Co. को दी, जिसको इन्होंने बहुत पसन्द किया और इसका फ्रांसीसी भाषा से अनुवाद करा कर १८१७ ई० में इसे अंग्रेज़ी भाषा में छपवाया । गवर्नर जनरल महोदय Lord William Bentinck (१८२८- १८३५ ई०) ने भी इस पुस्तक के कथन को सत्य स्वीकार करते हुए इसकी बहुत प्रशंसा की है। भारत की सबसे प्रथम अंग्रेज सम्राज्ञी महारानी Victoria (१८३७ - १६०१ ई०) ने राज्य आज्ञापत्र द्वारा १ नवम्बर १८५८ को धार्मिक स्वतन्त्रता की घोषणा करते हुए स्पष्ट कहा था कि भारतीय प्रजा को अपने-अपने विश्वास के अनुसार धर्म पालने और धार्मिक क्रियाओं के करने का पूर्ण अधिकार है । १६ सितम्बर १८७१ ई० को लेफ्टिनेण्ट गवर्नर पञ्जाब तथा संयुक्त प्रान्त ने भी अपने भाषणों द्वारा इस राजकीय नियम का समर्थन किया था । Edward VII (१६०१ - १६१० ई०) George V (१६१०१६३६ ई०), Edward VIII (१६३६ ई०) और George VI (१६३६ - १६४७ ई०) ने भी अपने राज्य समय इस धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार को अपनाया था । १८७६ ई० में जैन रथयात्रा खुर्जा में रोक दी गई, तो प्रान्तीय सरकार ने जैनियों के धार्मिक अधिकारों का अपहरण नहीं होने दिया ! लाट साहब ने मेरठ के कमिश्नर को लिखकर उत्सव निकलवाया' । १ : Letter No. 811, dated 10th Nov. 1876, from Offg. Seey, Govt. N. W. P. to the Commissioner Meerut, which runs as follows. --' "Rath Yatra Procession already takes place in these provinees without any opposition, His Excellency therefore does not see how the Govt. can refuse to permit in Khurja": ४६६ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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