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५-बिना छने जल का त्यागः जैनधर्म अनादि काल से कहता चला आया है कि इनस्पति, जल, अग्नि, वायु और पृथ्वी एक इन्द्रिय स्थावर जीव है परन्तु संसार न मानता था। डा० जगदीशचन्द्र बोस ने वनस्पति को वैज्ञानिक रूप से जीव सिद्ध कर दिया तो बल की एक छोटी सी बूंद में ३६४५० जीव संसार को जैनधर्म की सचाई का पता चला । इसी प्रकार जल को जीव मानने से इन्कार किया जाता रहा तो कैप्टिन स्ववोर्सवी ने वैज्ञानिक खोज से पता लगाया कि पानी की
एक छोटी सी बूंद में ३६४५० सूक्ष्म जन्तु होते हैं । यदि छान १. कर पानी न पिया जावे तो यह सब जन्तु शरीर में पहुँच जावेंगे,
जिससे हिंसा के अलावा अनेक बीमारियों के होने का भी भय है। मनुस्मृति में जल को वस्त्र से छान कर पीने की शिक्षा दी गई है। जिसके आधार पर महर्षि स्वामी दयानन्द जी ने भी सत्यार्थप्रकाश के दूसरे समुल्लास में जल को छान कर पीने के लिये कहा है । १ सिद्धपदार्थ विज्ञान यू० पी० गवनमेण्ट प्रेस, सरल जैनधर्म, पृ० ६५-६६ २ "दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं जलं पिवेत्।। -मनुस्मृति ६.४६
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