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भी देवताओं की भाँति अर्हन का पूजन करो' ।ये सर्वज्ञ हैं । जो मनुष्य श्रर्हन्तों की पूजा करता है, स्वर्ग के देव उस मनुष्य की पूजा करते हैं। ____ यह तो स्पष्ट है कि अर्हन्त = अर्हन् = जिनेन्द्र =जिनदेव = जिनेश्वर अथवा तीर्थङ्कर की पूजा का कथन वेदों और पुराणों में भी है। अब केवल प्रश्न इतना रह जाता है कि यह जैनियों के पूज्यदेव हैं या कोई अन्य महापुरुष ? हिन्दी शब्दार्थ तथा शब्द कोषों के अनुसार इनका अर्थ जैनियों के 'पूज्यदेव' हैं । यही नहीं बल्कि इनके जो गुण और लक्षण जैनधर्म बताता है वही ऋग्वेद स्वीकार करता है, "अहंन्देव ! आप धर्मरूपी बाणों, सदुपदेश (हितोपदेश) रूपी धनुष तथा अनन्तज्ञान आदि आभूषणों के धारी, केवल ज्ञानी (मर्वज्ञ) और काम, क्रोधादि कषायों से पवित्र (वीतरागी) हो । श्राप के समान कोई अन्य बलवान नहीं, आप अनंतानन्त शक्ति के धारी हो । फिर भी कहीं किसी दूसरे महापुरुष का भ्रम न हो जाये, स्वयं ऋग्वेद ने ही स्पष्ट कर दिया, "अहंन्तदेव आप नग्न स्वरूप हो, हम आपको सुख-शान्ति की प्राप्ति के लिये यज्ञ की वेदी पर बुलाते हैं । १ ईडितो अग्ने सनसानो अहन्देवान्याक्ष मानुषात्पूर्वो अद्य। सावह मरुतां श? अच्युतमिन्द्रं नरोबर्हिषदं यजध्वम् ॥
-ऋग्वेद मण्डल २, अध्याय ११, सूक्त ३ २ अर्हन्ताये सुदानवो नरो असामि शवसः ।
प्रवशं यज्ञियेभ्यो दिवो अर्चामरुद्भः॥ -ऋ० म० अ० ४, सू० ५२
इसी ग्रन्थ के फुटनोट नं. २, पृ० ४५ और फुटनोट नं० ३, पृ० ४६ ४ अर्हन्विभर्षि सायकानि धन्वाह निष्कं यबतं विश्वरूपम् ।
अहन्निदं टयसे विश्वमम्वं नवाअोजीयोरुद्र त्वदस्ति ॥ ऋ० २।४।३३ ५ द्वनप्तुर्देववतः शते गोर्धारथा वधूमन्ता सुदासः । अहनग्ने पैजवनम्यदानं होतेव सद्मममि रेमन् ॥ -ऋ०७२/१८
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