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कहा जाता है - मूर्ति जड़ है इसके अनुराग से क्या लाभ ? सिनेमा जड़ है लेकिन इसकी बेजान मूर्तियों का प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता, पुस्तक के अक्षर भी जड़ हैं, परन्तु ज्ञान की प्राप्ति करा देते हैं, चित्र भी जड़ हैं लेकिन बलवान योद्धा का चित्र देख कर क्या कमजोर भी एक बार मूँछों पर ताव नहीं देने लगते ? क्या वैश्या का चित्र हृदय में विकार उत्पन्न नहीं करता ? जिस प्रकार नकशा सामने हो तो विद्यार्थी भूगोल को जल्दी समझ लेता है उसी प्रकार अर्हन्तदेव की मूर्ति को देखकर अर्हन्तों के गुण जल्दी समझ में आजाते हैं । मूर्त्ति तो केवल निमित्त कारण (object of devotion) है ' ।
कुछ लोगों को शङ्का है कि जब अर्हन्तदेव इच्छा तथा रागद्वेष रहित हैं, पूजा से हर्ष और निन्दा से खेद नहीं करते, कर्मानुसार फल स्वयं मिलने के कारण अपने भक्तों की मनोकामना भी पूरी नहीं करते तो उनकी भक्ति और पूजा से क्या लाभ ? इस शङ्का का उत्तर [स्वा० समन्तभद्राचार्य जी ने स्वयम्भूस्तोत्र में
बताया:
न पूजयाऽर्थस्त्वयि वीतरागे न निन्दया नाथ ! विवान्तवैरे ।
तथाऽपि ते पुण्य-गुण स्मृति: पुनाति चित्तं दुरिताञ्जनेभ्यः ||५७|| अर्थात् — श्री अर्हन्तदेव ! राग-द्वेष रहित होने के कारण पूजा - वन्दना से प्रसन्न और निन्दा से आप दुखी नहीं होते और न हमारी पूजा अथवा निन्दा से आपको कोई प्रयोजन है । फिर भी आपके पुण्य गुणों का स्मरण हमारे चित्त को पाप-मल से पवित्र करता है । श्रीमानतुङ्गाचार्य ने भी भक्तामर स्तोत्र में इस शङ्का का समाधन करते हुए कहा :
मै
Great men are still admirable. The unbelieving French believe in their Voltaire and burst out round him into very curious hero-worship Does not every true man feel that he is himself made higher by doing reverence to what is really above him. —English Thinker, Thomas Carlyle.
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