Book Title: Vardhaman Mahavir
Author(s): Digambardas Jain
Publisher: Digambardas Jain

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Page 543
________________ सूक्ष्म जन्तुओं को नष्ट करने और नजर न आने वाले जीवों की उत्पत्ति को रोकने का है । दीपक, हण्डे तथा बिजली की तेज रोशनी में भी यह शक्ति नहीं बल्कि इसके विरुद्ध बिजली आदि का स्वभाव मच्छर आदि जन्तुओं को अपनी तरफ खींचने का है, इस लिये तेज से तेज बनावटी रोशनी में भोजन करना वैज्ञानिक दृष्टि से भी अनेक रोगों की उत्पत्ति का कारण है' । सूर्य की रोशनी में किया हुआ भोजन जल्दी हज्म हो जाता है इसलिये आयुर्वेद के अनुसार भी भोजन का समय रात्रि नहीं बल्कि सुबह और शाम है २ । रात्रि को तो कबूतर और चिड़िया आदि तिर्यंच भी भोजन नहीं करते । महात्मा बुद्ध ने रात्रि भोजन की मनाही की है । श्री कृष्ण जी ने युधिष्ठिर जी को नरक जाने के जो चार कारण बताये हैं, रात्रि भोजन उन सब में प्रथम कारण है । उन्होंने यह भी बताया कि रात्रि भोजन का त्याग करने से १ महीने में १५ दिन के उपवास का फल प्राप्त होता है" । महर्षि मार्कण्डेय के शब्दों में रात्रि भोजन करना, मांस खाने और पानी पीना लहू पीने के समान We can ward off diseases by judicious choice of food light. From our own laboratories experience, we observe that carbohydrates oxidized by air, only in presence of light. In a tropical country like India, the quality of food taken by an average individual is poor, but the abundance of sunlight undoubtly compensates for this dietary deficiency. -Prof. N. R. Dhar D. Sc: J. H. M. (Nov. 1928) P. 28-31. २ सायं प्रातर्मनुष्याणामशनं श्रुतिचोदितम् । नान्तरा भोजनं कुर्यादग्निहोत्रसमो विधिः । - ऋषि सुश्रुत - ३ मज्झिमनिकाय, लकुटिकोपम सुत्त, जिसका हवाला डा० जगदीश - चन्द्र के महावीर वर्धमान (भ० जै० महामण्डल, वर्धा) पृ० ३२ पर है । ४-५ इसी ग्रन्थ के पृ० ५१४ का फुटनोट नं ० २ । [ ५१७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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