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अकेले जैनवीर सेठ हुकमचन्द जी ने १० लाख रुपये War Relief Fund और पूरे एक करोड़ रुपये War Loan में दिये । जीतने पर भी होमरूल न मिलने के कारण दुसरे महायुद्ध (१९३६-१९४५ ई०) के समय भारत ने अंग्रेजों को सहयोग देने से इंकार कर दिया, तो ये अहिंसा-प्रेमी वीर श्री महात्मा गांधी ही थे कि जिन्होंने संसार में सुख-शान्ति स्थापित करने के हेतु
आपत्ति के समय अंग्रेजों की सहायता के लिये देश को तैयार किया। देश की आवाज पर जैनी कैसे पीछे रह सकते थे ? न केवल रुपये से सहायता की, बल्कि Engineers, Scientists and Pilots आदि अनेक रूप में जैन नवयुवकों ने अपने भारतवासियों के कन्धे-से-कन्धा मिला कर वह वीरता और योग्यता दिखाई कि युद्ध विजयपूर्वक समाप्त होगया। भारत को स्वतन्त्र । करने के स्थान पर जब इसके नेताओं और देशभक्तों पर अत्याचार होने लगे, तो न केवल जैन-वीर बल्कि जैन-महिलाएँ भी आगे बढ़ीं। जैन-वीर और वीराङ्गनाएँ जेलों में गये, पुलिस के डण्डे खाये, जुर्माने अदा किये। यही नहीं, बल्कि जिनको जेल में ठूस दिया जाता था, उनके पीछे उनके स्त्री-बच्चों को तङ्ग किया जाता था। जुर्माने की वसूलयाबी में उनके घर का जरूरी सामान और खाने-पीने की रसद तक कुर्क कर ली जाती थी। अनेक जैन-वीरों ने उनके जुर्माने अपने पास से भरे और उनके कुटुम्बियों को बिना किसी स्वार्थ के खाने-पीने का सामान और हर प्रकार का सहयोग दिया ।
George Catlions Topf Å HETCHT NIET it ast माता जैन-धर्म अनुरागी थीं और उनके हृदय पर जैन-साधु का
१ सर सेठ हुकमचन्द अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० १३१ । ५०० ]
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