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पब्लिशर को हुक्म दिया कि अपनी हिस्ट्री को जैनियों के विरोध के अनुसार ठीक करें।
१९३८ में Pigeon Shoot के नाम से Imperial Secretariate नई देहली में हजारों कबूतर मारे गये तो जैनियों को बड़ा दुख हुआ। अगले साल फिर २६ मार्च १६३६ को दूसरों की हजारों प्यारी जानों पर दिल बहलाने का दिन फिर निश्चित हुआ तो K. B. Jinraja Hegde, M. L. A. के कहने पर नई देहली के जैनियों ने श्री वायसराय महोदय से हजारों बेगुनाह कबूतरों के मारे जाने को बन्द करने के लिये प्रस्ताव भेजा, जिस पर Lord Linlithgow (१९३६-१९४३ ई०) ने तुरन्त सदा के लिये इस जीव-हिंसा को बन्द कर दिया। इस प्रकार जैनियों को ब्रिटिश शासन का सहयोग पूर्णरूप से प्राप्त रहा।
४६-भारत की स्वतन्त्रताः प्रथम महायुद्ध (१६१४-१६१८) के समय अंग्रेजों ने जब यह विश्वास दिलाया कि यदि भारत हमारी सहायता करे और हम जीत जायें तो भारत को 'होमरूल' देंगे, तो देश को एक बार फिर सदा के लिये स्वतन्त्र देखने की अभिलाषा से अपने भारतवासियों के साथ-साथ जैनियों ने थोड़ी संख्या में होने पर भी अधिक-से-अधिक रंगरूट भर्ती कराये और करोड़ों रुपये चन्दे और कर्जे में देश-सेवा के लिये अर्पण किये। इन्दौर के
Circular No. 1/2878 B. of Feb. 27, 1925, the chapter on The Founder of Jainism Pages 12-15 Should not from part of the school teachings, as it contains passages to which objection has been taken by the Jains". The Publishers have been asked to revise the chapter. Letter No.5258 B. of April 24, 1925, from Director P. I. Punjab to Ms. Uttar Chand Kapur & Sons Publishers, Lahore.
“The Founder of Jainism" contains passages objectionable to Jain, It has therefore been decided that ihese may be modified
in the light of the criticisms made by Shri Atamanand Jain Sabha. २ For full resolution. see Hindustan Times, New Delhi, Dated,
March 27, 1939.
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