Book Title: Vardhaman Mahavir
Author(s): Digambardas Jain
Publisher: Digambardas Jain

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Page 521
________________ फिर भी प्रो० रामस्वामी श्रायगर के शब्दों में "जैन मुनियों का चारित्र, तप, विद्या और ज्ञान इतना अनुपम था कि उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी और औरङ्गजेब जैसे पक्के मुसलमान बादशाहों से भी पर्याप्त सम्मान प्राप्त किया था। ४२-मौहम्मदशाह (१७१६-१७.८ ई०) के मौलवियों ने श्री जी. के. नारीमान जी के शब्दों में फतवा दे रखा था कि "हदीस के अनुसार जीवहिंसा उचित नहीं है, इसलिये शहनशाह मौहम्मदशाह ने पशु-हत्या को बन्द कर दिया है”। .. ४३-हैदरअली (१७६६-१७८२ ई०) ने श्रवणवेलगोल के जैन मन्दिरजी के लिये भूमि-दान दी थी। ४४-नवाब हैदराबाद ने नग्न अवस्था में चलने-फिरने पर पाबन्दी लगा रखी थी, परन्तु नग्न जैन-मुनियों के लिये यह आज्ञा लागू न थी। उन्होंने अपने फर्मान मोरखा : रमजान १३५७ हिजरी द्वारा नग्न जैन साधुओं को मुस्तसना कर रखा था । १५-अंग्रेजीराज्य: Rev. Abbe J. A. Dubois मैसूर राज्य में पादरी थे। इन्होंने फ्रांसीसा भाषा की "भारतवर्ष के लोगों के स्वभाव, आचरण, रीतियों का और उनके धर्म तथा गृहस्थ सम्बन्धी कामों का वर्णन" नाम की पुस्तक में लिखा है: "निःसन्देह जैनधर्म ही पृथ्वी पर एक सच्चा धर्म है और यही सर्व मनुष्यमात्र का प्राचीन धर्म है," । Jainacharyas by their character, attainment and scholarship command the respect of even Muhammaden Sovereigns like Allauddin and Auranga Padusha (Aurangzeb). --Studies in South Indian Jainism Vol. II, P, 132. २ उदू दैनिक मिलाप, कृष्ण नम्बर (अगस्त १९३१) पृ० ३६ । $ Even Hyder Ali, the bigoted Muslim King granted villages to the Jaina Temples. -New Ind. Ant. Vol. I, p. 521. ४ सदर आजम का निशान मुजारया नं० १६३, मौरखा ५ दिले १३४८ फ ५ जैनधर्म महत्त्व (सूरत) भा० १, पृ० ६३-११२, १६८-१६६ । [ ४६५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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